मणिपुर में हिंसा की ताजा घटनाओं ने चिंता का दायरा इस रूप में बढ़ा दिया है कि क्या अब नगा समुदाय भी इसमें एक पक्ष के रूप में शामिल हो रहा है! इससे पहले हिंसा और टकराव मुख्य रूप से कुकी और मैतेई समुदायों के बीच था। लंबे समय तक चले प्रयासों की वजह से प्रशासनिक उपायों के बाद पिछले कुछ दिनों तक हिंसक घटनाओं में कुछ कमी देखी जा रही थी। इससे शांति की उम्मीद बंध रही थी। मगर हिंसा का नया दौर चिंता बढ़ाने वाला है। दरअसल, राज्य के उखरूल जिले के थोवई गांव में शुक्रवार को भारी गोलीबारी के बाद तीन युवकों के क्षत-विक्षत शव पाए गए। उखरूल जिला तांगखुल नगा बहुल है और अब तक अपेक्षया शांत था। इस इलाके में हिंसा की यह पहली घटना है।

अपने गांव थोवई की रखवाली करने के दौरान हुआ हमला

खबरों के मुताबिक तीन युवकों पर उस समय हमला हुआ, जब वे अपने गांव थोवई की रखवाली कर रहे थे। थोवई कुकी समुदाय का गांव है। हालांकि सीमा सुरक्षा बल और पुलिस ने आरोपियों की तलाश की बात कही है, लेकिन अब नए सिरे से ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या हिंसा की आग में अब नगा भी कूद पड़े हैं! अगर वास्तव में ऐसा होता है तो पहले से ही जातीय संघर्ष से जूझ रहे मणिपुर में हालात और मुश्किल होंगे, इसका दायरा कुछ पड़ोसी राज्यों को भी प्रभावित कर सकता है।

राज्य में हिंसा पर काबू पाना अब भी मुश्किल

सवाल है कि करीब तीन महीने पहले शुरू हुई हिंसा और अराजकता अगर अब भी नहीं थम सकी है, तो इसकी जिम्मेदारी किस पर है। सही है कि इस बीच सरकार की ओर से हर स्तर पर सख्ती बरतने, शांति कायम करने के लिए सेना तक उतारने की कवायदें की गईं। हिंसा रोकने के लिए केंद्र सरकार ने शांति समिति भी गठित की, लेकिन ऐसा लगता है कि इस सबका कोई खास असर नहीं पड़ा। एक छोटे से राज्य में हिंसा पर काबू पाना अब भी मुश्किल बना हुआ है। मई की शुरुआत से जारी जातीय हिंसा ने राज्य को एक तरह से अलग-अलग हिस्सों में विभाजित कर दिया है।

मैतेई समुदाय को जनजाति के दर्जे की बात से शुरू हुआ टकराव अब भी जिस रूप में जारी है, वह राज्य के साथ-साथ समूचे देश के लिए चिंता का कारण होता जा रहा है।

अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि लगातार हिंसक घटनाओं के बाद अब कुकी इलाकों में अलग प्रशासन तक की मांग तेज हो रही है। ऐसी स्थिति में नगा संगठनों की ओर से भी यह मांग उठ रही है कि ‘किसी अन्य समुदाय’ की मांगों पर गौर करते हुए नगा हित प्रभावित न हों। मणिपुर में जो हालात हैं, उसमें यह चिंता स्वाभाविक हो सकती है, लेकिन अगर आगे नगा समुदाय के भी उग्र या हिंसक होने की स्थितियां बनती हैं तो इससे समस्या का कोई हल नहीं निकलेगा, बल्कि हालात और जटिल ही होंगे। हालांकि यह आशंका भी जताई जा रही है कि ताजा हिंसा किसी अन्य पक्ष की ओर से समस्या को उलझाने की कोशिश भी हो सकती है!

मुश्किल यह है कि हिंसा के इतना लंबा वक्त खिंचने के बावजूद सरकार अलग-अलग पक्षों को वार्ता के मंच पर लाकर कोई हल निकालने में नाकाम रही है। जब तक जमीनी स्तर पर कोई ठोस पहल नहीं होगी, हिंसा और टकराव में शामिल पक्षों को बातचीत के जरिए समस्या के हल के लिए तैयार नहीं किया जाएगा, तब तक सामान्य स्थिति और शांति बहाल करने में स्थायी कामयाबी नहीं मिलेगी।