भीड़भाड़ वाली जगहों पर हादसों की आशंका हमेशा बनी रहती है। इसलिए प्रशासन से अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसी जगहों पर आवाजाही, निकासी, हवा-पानी, चिकित्सा सुविधा आदि की समुचित व्यवस्था करे। भीड़ प्रबंधन को लेकर नियम-कायदे भी तय हैं। मगर इसे लेकर सरकारें और पुलिस-प्रशासन प्राय: लापरवाह ही देखे जाते हैं। यही वजह है कि अक्सर भगदड़, तेज गर्मी, मंचों के टूटने, आग लगने आदि की वजह से दुर्घटनाएं होती हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, पर प्रशासन उनसे कोई सबक लेता नजर नहीं आता। उसी की ताजा कड़ी चेन्नई के ‘एअर शो’ में तेज गर्मी और निर्जलीकरण के कारण पांच लोगों की मौत और करीब सौ लोगों की सेहत खराब होने के रूप में सामने आई।

बताया जा रहा है कि विश्व कीर्तिमान बनाने के लिए भारतीय वायु सेना ने करीब सोलह लाख लोगों को चेन्नई के मरीना समुद्र तट पर जुटा लिया। मगर इतने लोगों के लिए जो इंतजाम होने चाहिए थे, वे नहीं किए गए। वहां का विपक्ष राज्य सरकार पर बदइंतजामी का ठीकरा फोड़ रहा है, जबकि सरकार का कहना है कि भारतीय वायु सेना ने जितने सुरक्षाकर्मी मांगे थे, उससे अधिक उपलब्ध कराए गए थे। साढ़े छह हजार पुलिस कर्मी और डेढ़ हजार होमगार्ड तैनात किए गए थे। फिर यह सवाल अपनी जगह है कि इसके बावजूद लोगों को परेशानियों का सामना क्यों करना पड़ा।

बताया जा रहा है कि लोगों की बढ़ती भीड़ के मद्देनजर पुलिस कर्मियों ने समुद्र किनारे पानी वगैरह बेच रहे खोमचे वालों को हटा दिया था। इसलिए लोगों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं हो सका। फिर कार्यक्रम खत्म होने के बाद लोगों में ऐसी अफरातफरी मची कि घर पहुंचने के लिए बसों और मेट्रो आदि के लिए जगह-जगह भीड़ लग गई। चेन्नई की सड़कों पर घंटों वाहनों का जाम लगा रहा।

चेन्नई में मुलभूत सुविधाओं का रहा अभाव

जब भी इस तरह के आयोजन होते हैं तो अनुमानित भीड़ के मद्देनजर आने-जाने के रास्ते पहले से तय किए जाते हैं, लोगों के लिए पीने के पानी, आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं आदि का इंतजाम किया जाता है। मगर चेन्नई के ‘एअर शो’ में इसका नितांत अभाव देखा गया। आखिर क्यों भारतीय वायु सेना और चेन्नई पुलिस ने यह जानते हुए भी कि करीब सोलह लाख लोगों की भीड़ जमा होने वाली है, सुरक्षा संबंधी उपायों में लापरवाही बरती। ऐसे कीर्तिमान बना लेने का भी क्या लाभ, जिसमें लोगों को अपनी जान गंवानी पड़े।

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यह कोई ऐसा आयोजन नहीं था, जिसे स्थानीय और अननुभवी लोगों ने बिना कुछ सोचे-समझे आयोजित किया था। इसके लिए महीनों से तैयारियां की गई होंगी। प्रचार-प्रसार किया गया होगा। उसमें विशिष्ट लोगों को अतिथि के रूप में बुलाया गया होगा। मौसम विभाग से जानकारी ली गई होगी। मौसम संबंधी जानकारी के लिए तो भारतीय वायुसेना का अपना भी इंतजाम रहता है। फिर, कैसे यह अनुमान लगाने में चूक हुई कि लोगों को गर्मी के कारण परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं।

ट्रैफिक संभालने में विफल रही पुलिस

यह भी समझ से परे है कि जब पर्याप्त संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात थे, तो यातायात व्यवस्था संभालने में वे कैसे विफल साबित हुए। इस घटना से फिर यही साबित हुआ है कि प्रशासन को या तो भीड़ संभालने का उचित प्रशिक्षण नहीं है या वह जानबूझ कर ऐसी लापरवाही करता है। मानो, आमजन की सुरक्षा उनकी खुद की जिम्मेदारी मान ली गई है। इसे सामान्य चूक या लापरवाही नहीं माना जा सकता, यह प्रवृत्तिगत दोष है।