किसी भी आयोजन की सफलता या विफलता इसी से तय हो जाती है कि उसमें पहुंचने वाले लोगों की सुविधा और सुरक्षा का इंतजाम कैसा है। प्रयागराज के महाकुंभ में बार-बार पैदा हो जा रही परेशानियां इस बात की गवाही है कि वहां जिस जोर-शोर से लोगों को आने के लिए प्रेरित किया गया, उतनी संजीदगी से उनके आने-जाने, ठहरने, नहाने आदि की व्यवस्था नहीं की जा सकी। शायद प्रशासन अंदाजा लगाने में विफल रहा कि कितने लोग वहां पहुंच सकते हैं और उनकी सुविधाओं का कैसे ध्यान रखा जाना चाहिए। पहले ही अमृत स्नान के बाद वहां बदइंतजामी की पोल खुलनी शुरू हो गई थी।
मौनी अमावस्या के दिन मची भगदड़ में लोगों के घायल होने और मारे जाने के बाद भी जरूरी उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया। इसके चलते न केवल प्रयागराज में, बल्कि आसपास के वाराणसी और अयोध्या जैसे तीर्थस्थानों पर भी परेशानियां बढ़ गईं। मौनी अमावस्या पर हुई भगदड़ के बाद सरकार और प्रशासन को काफी किरकिरी झेलनी पड़ी।
सड़कों पर घंटों जाम में फंसे रहे श्रद्धालुओं
विपक्ष और संत समुदाय की आलोचनाओं के बाद मेला प्रशासन ने कुछ कड़े कदम जरूर उठाए, मेला क्षेत्र में विशिष्ट लोगों के प्रवेश और गाड़ियों की आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया, मगर फिर वैसी ही स्थिति दिखाई देने लगी। माघ पूर्णिमा के दिन इतने लोग जुट गए कि प्रयागराज को जोड़ने वाली सड़कों पर घंटों जाम लग गया।
महाकुंभ में हादसों का सिलसिला, आग लगने की कई घटनाएं आ चुकी हैं सामने
महाकुंभ को लेकर कई महीने से प्रचार-प्रसार किया जा रहा था। लोगों से अपील की गई कि एक सौ चौवालीस वर्ष बाद आए इस महाकुंभ में अमृत स्रान के लिए अवश्य आएं। बढ़-चढ़ कर दावे किए गए कि वहां अब तक की सबसे अच्छी व्यवस्था की गई है। पैंतालीस करोड़ से ऊपर लोगों के आने का अनुमान लगाया गया था। मगर इस आयोजन में विशिष्ट लोगों की सुविधाओं पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया, जिसके चलते आम लोगों को अनेक असुविधाओं का सामना करना पड़ा। लगातार रेल सेवाएं बाधित होती रहीं।
लोगों की भीड़ से प्रशासन के फूल गए हाथ-पांव
संगम क्षेत्र में भीड़ बढ़ने के कारण कई गाड़ियों को बाहर ही रोकना पड़ा। सड़क मार्ग से आने वाले लोगों को पंद्रह-सोलह घंटे तक जाम में फंसना पड़ा। इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि माघ पूर्णिमा के दिन मध्यप्रदेश सरकार को भी प्रयागराज जाने वाले मार्गों पर यातायात सुगम बनाने के लिए पुलिस प्रशासन को उतारना पड़ा। जिन लोगों ने प्रयागराज से स्नान करने के बाद काशी और अयोध्या का रुख किया, उन्हें भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उन शहरों में प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए।
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही मनरेगा, फर्जीवाड़े की वजह से हटाए गए 85 लाख कार्ड
हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मेला प्रशासन से जुड़े अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाते हुए अतिरिक्त अधिकारियों को वहां उतार दिया और जल्दी ही समस्या पर काबू पाने में कामयाबी मिल गई। पर जिन श्रद्धालुओं को लंबी दूरी तक पैदल चलना और परेशानियों का सामना करना पड़ा, जिन्होंने अपने परिजन खो दिए, जो घायल हो गए, उनके मन में स्थायी कड़वाहट बन गई।
सुगम तरीके से संपन्न होने पर मानी जाती है कार्यक्रम की सफलता
यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि जब प्रशासन को अंदाजा था कि कितने लोग स्नान के लिए आ सकते हैं, तो फिर उसने लोगों के लिए कोई व्यावहारिक व्यवस्था क्यों नहीं की। कैसे लोग जगह-जगह भीड़ की शक्ल में जमा होते और परेशानियों की वजह बनते गए। किसी भी आयोजन की सफलता केवल इसमें नहीं होती कि उसमें कितने लोगों को जुटा लिया गया, बल्कि इसमें होती है कि उसे कितने सुगम तरीके से संपन्न कराया गया।