आज देश भर में ‘दो मिनट नूडल्स’ के प्रचार-वाक्य के साथ मैगी देश की एक बड़ी आबादी के बीच लोकप्रिय है। लेकिन पिछले कुछ दिनों की जांच में इसमें सेहत को नुकसान पहुंचाने वाले घातक रसायनों के पाए जाने की बात सामने आई है। इससे यही पता चलता है कि ज्यादा मुनाफे के लिए कंपनियां किस हद तक जा सकती हैं। हाल ही में बाराबंकी स्थित उत्तर प्रदेश खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन ने पहले गोरखपुर में राज्य प्रयोगशाला, फिर कोलकाता की केंद्रीय खाद्य प्रयोगशाला में मैगी के करीब एक दर्जन नमूनों की जांच कराई। इसमें सीसा और एमएसजी यानी मोनोसोडियम ग्लूटामैट की मात्रा खतरनाक स्तर पर पाई गई।
यह निर्धारित सीमा से लगभग सात गुना ज्यादा है। दिल्ली में भी मैगी के तेरह नमूनों की जांच हुई, उनमें से दस में यही स्थिति पाई गई। मामला तूल पकड़ने के बाद केरल सहित देश के कई हिस्सों में सरकारी और निजी समूहों ने अपने स्टोर में फिलहाल मैगी की बिक्री पर रोक लगा दी है।
अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतनी ज्यादा मात्रा में मौजूद सीसा या एमएसजी ने कितने लोगों की सेहत को किस स्तर पर नुकसान पहुंचाया होगा। एमएसजी का इस्तेमाल बड़े रेस्तरां से लेकर गली-मुहल्लों तक में मिलने वाले ‘चाइनीज फूड’ में व्यापक पैमाने पर किया जाता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक अगर खाद्य पदार्थों में एमएसजी का उपयोग निर्धारित सीमा के भीतर हो, तो भी इसका नियमित सेवन घातक साबित हो सकता है। सवाल है कि मैगी में इतने खतरनाक रसायन मौजूद थे, तो इतने सालों से यह खुले बाजार में कैसे बिक रहा था? जबकि खाद्य पदार्थों की मिलावट पर लगाम के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2011 लागू है और इसके लिए बाकायदा एक अलग महकमा काम करता है।
जाहिर है, यह प्रशासनिक लापरवाही का मामला है। लेकिन सच यह भी है कि आधुनिक रुचि के मनोवैज्ञानिक दबाव में या तेज रफ्तार जीवन शैली में लोग खुद भी ऐसे खाद्य पदार्थों पर निर्भर होते गए हैं जो बहुत कम समय में तैयार हो जाएं। मैगी या फास्ट फूड कहे जाने वाले खाद्य पदार्थ इस लिहाज से सुविधाजनक तो होते हैं, लेकिन इनमें इस्तेमाल होने वाले रसायनों के जोखिम से लोग आमतौर पर अनजान रहते हैं। विज्ञापनों का असर उनमें ऐसी चीजों के प्रति लगातार चाहत जगाए रखता है और फिर यह चाहत आदत में बदल जाती है।
मैगी का प्रचार अमिताभ बच्चन, माधुरी दीक्षित और प्रीति जिंटा जैसी नामी-गिरामी फिल्मी हस्तियां करती रही हैं। इसी तरह, कुछ खास शीतल पेयों को लोकप्रिय बनाने में विज्ञापन के जरिए सचिन तेंदुलकर या आमिर खान जैसी हस्तियों की भूमिका सभी जानते हैं। जबकि कुछ साल पहले कोका कोला जैसे कई ठंडे पेयों में कीटनाशकों की निर्धारित मात्रा से ज्यादा और सेहत के लिहाज से खतरनाक मौजूदगी की बात सामने आई थी।
यह समझना मुश्किल नहीं है कि विज्ञापन की इस चकाचौंध का साधारण लोगों पर क्या असर पड़ता होगा जिसमें कामयाब और लोकप्रिय चेहरे किसी खाद्य पदार्थ का गुणगान करते हैं। इसलिए केंद्रीय खाद्यमंत्री रामविलास पासवान ने नए कानून में उपभोक्ता वस्तुओं का भ्रामक विज्ञापन करने वालों की भी जवाबदेही तय करने की बात कही है। विज्ञापनों के अलावा, बहुत-से मामलों में पैकेटों पर दी जाने वाली सूचना भी ग्राहकों को अंधेरे में रखती है। कई उत्पादों में उनके घटक नहीं बताए जाते। फिर जानकारी ऐसी भाषा में होती है, जिसे आम लोग समझ नहीं सकते।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta