पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ लंबे समय से भारत में प्रकट-अप्रकट तौर पर आतंकवादी गतिविधियां फैलाने में शामिल रही है। कई बार इसके पुख्ता सुबूत मिले हैं, जिसे भारत संयुक्त राष्ट्र से लेकर दुनिया के दूसरे मंचों पर भी रखता रहा है। लेकिन पाकिस्तान ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया। यहां तक कि मुंबई के सिलसिलेवार बम धमाकों के जिम्मेवार माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम की मौजूदगी को भी उसने कभी नहीं माना। नवंबर 2008 में मुंबई में हुए आतंकी हमलों के आरोपियों के खिलाफ न्यायिक कार्यवाही को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने से वह हमेशा कतराता रहा है, वहीं पठानकोट मामले में उसने भारत की तरफ से सौंपे गए तमाम सबूतों को सबूत मानने से ही इनकार कर दिया।
यह बात अलग है कि पाकिस्तान के झूठ की कलई बार-बार खुलती रही है। आइएसआइ की ताजा करतूत का खुलासा तब हुआ, जब गुजरात के भुज शहर से उसके दो संदिग्ध एजेंट आतंकवादी निरोधक दस्ते के हत्थे चढ़े। दोनों एजेंट उस वक्त सेना और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की गतिविधियों के बारे में कुछ संवेदनशील सूचनाएं अपने पाकिस्तानी आकाओं को भेज रहे थे। एटीएस दोनों पर तब से नजर रख रहा था, जब से उन पर शक हुआ था। दोनों युवक भुज जिले के रहने वाले हैं। एक एजेंट के पास से पाकिस्तानी कंपनी द्वारा बनाया गया एक मोबाइल फोन, वहां जारी उसका पहचान पत्र और भारत में बना एक आधार कार्ड बरामद हुआ है। शुरुआती पूछताछ में पता चला कि वह हाल में भारतीय पासपोर्ट पर चार बार पाकिस्तान जा चुका है। फिलहाल दोनों एजेंटों से गुजरात और केंद्र की एजेंसियां पूछताछ कर रही हैं।
ये दोनों एजेंट उस वक्त गिरफ्तार किए गए हैं, जब भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। समझा जा रहा है कि इस कार्रवाई से बौखलाई आइएसआइ ने भारत में अपने एजेंटों को ज्यादा सक्रिय रहने के लिए कहा हो। इन एजेंटों की गिरफ्तारी से पाकिस्तान के उस दावे की पोल एक फिर खुली है कि भारत में होने वाली आतंकी घटनाओं से उसका कोई लेना-देना नहीं रहता। आइएसआइ कोई निजी संस्था या आतंकी समूहों का पोषित इदारा नहीं है, बल्कि पाकिस्तानी फौज की खुफिया एजेंसी है। और अगर वह एजेंसी भारत में जासूसी करने के लिए अपने एजेंट रखे हुए है तो समझा जा सकता है कि उसका मकसद क्या है। जम्मू-कश्मीर के एक डीएसपी पर भी आइएसआइ को जानकारी देने का आरोप लगा है; इस आरोप में राज्य के पुलिस महानिदेशक ने एक दिन पहले उसे निलंबित कर दिया है।
पठानकोट और फिर उड़ी में सैनिकों पर आतंकी हमले होने के बाद यह आशंका जताई गई थी कि हमलावरों के पास पहले से काफी सूचनाएं थीं। पठानकोट हमले की बाबत तो एक पुलिस अफसर पर भी शक की सुई गई थी। हमले के पहले एअरबेस की जानकारी बाहर भेजने के आरोप में सेना का एक जवान गिरफ्तार भी किया गया था। ये सारी घटनाएं भारत में दहशतगर्दी को फैलाने, पनाह देने और मदद करने में पाकिस्तान की संलिप्तता की तरफ ही इशारा करती हैं। साथ ही, इस जरूरत को एक बार फिर रेखांकित करती हैं कि आतंकवादी खतरों के मद््देनजर भारत को लगातार और चौकस तथा सतर्क रहना होगा।