संवाद के कई माध्यम सामने आने के बाद उम्मीद थी कि मनुष्य अब अकेलापन महसूस नहीं करेगा। रिश्तों का ताना-बाना और मजबूत होगा। मगर ऐसा हुआ नहीं। मनुष्य खुद में सिमट कर रह गया। आसपास की भीड़ और आभासी दुनिया में बने सैकड़ों दोस्तों के बीच भी इंसान अकेला है, तो यह समझने की जरूरत है कि इसकी वजह क्या है। यह दुखद है कि हम न अब किसी का दुख सुनना चाहते हैं और न अपनी कोई पीड़ा किसी से साझा करना चाहते हैं।

ऐसे में जाने कितने शब्द अनसुने रह जाते हैं। तब अकेलापन एक ऐसा कड़वा अनुभव बन जाता है, जिसे एक समय के बाद मनुष्य धीरे-धीरे जीने लगता है और परिवार एवं समाज से कट जाता है। फिर वह ऐसी दिशा में चला जाता है, जहां से उसके लिए लौटना मुश्किल होता है। आज दुनिया का हर छठा इंसान इसी अकेलेपन का शिकार है। चिंता की बात यह है कि लाखों जिंदगियां इसके अंधकार में गुम हो जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की हाल की रपट के मुताबिक, अकेलापन हर वर्ष आठ लाख से अधिक लोगों की जान ले रहा है।

यह कड़वी सच्चाई है कि लोग समाज से ही नहीं, घर-परिवार से भी कट गए हैं। आसपास क्या चल रहा, यह भी उन्हें पता नहीं होता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अकेलापन सभी लोगों को प्रभावित कर रहा है। मगर सबसे ज्यादा शिकार युवा हो रहे हैं। यह सच है कि हर किसी के जीवन में चुनौतियां पहले से कहीं अधिक बढ़ी हैं। कामकाज के दबाव के बीच व्यस्तता ने उन्हें थका दिया है। रिश्तों में जटिलताएं भी आई हैं। सोशल मीडिया के मंचों पर किसी के हजारों मित्र हो सकते हैं, लेकिन असल जिंदगी में किसी एक भरोसे के दोस्त को ढूंढ़ना मुश्किल हो जाता है।

नतीजा यह कि अब ज्यादातर लोगों के मन में क्रोध, दुख और ईर्ष्या की भारी गठरी है। वे कभी इसकी गांठें खोल नहीं पाते। इसके साथ ही कई लोग अपनी महत्त्वाकांक्षाओं और नाकामियों के बोझ तले दब कर और भी अकेले पड़ते जाते हैं। ऐसे में सामाजिक जुड़ाव ही समस्या का हल है। संवाद होगा, तो राहें भी निकलेंगी। अकेलापन भी दूर होगा। अनसुने शब्दों की चीख गुम नहीं होगी।