चुनावों में धनबल के बढ़ते चलन को लेकर लंबे समय से चिंता जताई जाती रही है। इसे रोकने के लिए सरकार और भारत निर्वाचन आयोग सतत प्रयत्नशील देखे गए हैं। मगर हकीकत यही है कि इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगने के बजाय यह हर बार कुछ बढ़ी हुई ही दर्ज होती है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बार आम चुनाव के पहले चरण का मतदान हुआ भी नहीं है और अब तक चार हजार छह सौ पचास करोड़ रुपए मूल्य की जब्ती की जा चुकी है। यह पिछले आम चुनाव में हुई कुल तीन हजार चार सौ पचहत्तर करोड़ रुपए मूल्य की जब्ती से बहुत अधिक है।

अब तक हर रोज करीब सौ करोड़ रुपए मूल्य की जब्ती हो चुकी है

निर्वाचन आयोग का कहना है कि मार्च से जब्ती का सिलसिला शुरू हुआ और अब तक हर रोज करीब सौ करोड़ रुपए मूल्य की जब्ती की जा रही है। अभी तक की गई जब्ती में करीब पैंतालीस फीसद हिस्सा मादक पदार्थों का है। इसमें केवल तीन सौ पंचानबे करोड़ रुपए नगदी जब्त की गई है। चार सौ नवासी करोड़ रुपए मूल्य की शराब और दो हजार उनहत्तर करोड़ रुपए मूल्य के मादक पदार्थ जब्त हुए हैं।

कुछ राजनीतिक दलों के पास भारी मात्रा में धन जमा हो गया है

छिपी बात नहीं है कि चुनावों में काले धन को सफेद करने की कोशिशें तेज हो जाती हैं। राजनीतिक दल बहुत सारे ज्ञात-अज्ञात स्रोतों से चंदा इकट्ठा करते हैं। इसी से पार पाने के लिए चुनावी बांड का नियम बना था। मगर वह भी पारदर्शी साबित नहीं हुआ। उसमें काले धन और संदिग्ध चंदे का प्रवाह देखा गया। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय ने उसे असंवैधानिक करार दे दिया। मगर चुनावी बांड से आए चंदे के हिसाब-किताब से यह तो पता चल गया कि कुछ राजनीतिक दलों के पास भारी मात्रा में धन जमा हो गया है।

जाहिर है, जिन दलों के पास जितना अधिक धन है, वे उतना अधिक खर्च भी करेंगे। मगर चुनाव में मनमाने खर्च से समानता के अवसर का सिद्धांत बाधित होता है। इस पर अंकुश लगाना भारत निर्वाचन आयोग का दायित्व है। अच्छी बात है कि इस दिशा में वह प्रयास कर रहा है। मगर धनबल से जनबल को प्रभावित करने की प्रवृत्ति इस कदर बढ़ती गई है कि प्रत्याशी और पार्टियां न केवल निर्वाचन आयोग द्वारा तय सीमा से अधिक खर्च करने, बल्कि मतदाताओं को चोरी-छिपे नगदी और शराब, मादक पदार्थ, महंगे उपहार आदि देकर प्रभावित करने की कोशिश भी करती हैं। विचित्र है कि इसमें स्थानीय प्रशासन भी उनका सहयोग करता है। इस चुनाव में पार्टियों की मदद करते एक सौ छह सरकारी अधिकारी अब तक पकड़े जा चुके हैं।

इस बार चुनाव की तारीखों की घोषणा से पहले ही निर्वाचन आयोग अवैध धन के प्रवाह पर रोक लगाने के लिए निगरानी दलों के गठन का एलान कर दिया था। अच्छी बात है कि वे निगरानी दल मुस्तैदी से काम कर रहे हैं। मगर केवल जब्ती से राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की इस प्रवृत्ति को कहां तक रोका जा सकेगा, कहना मुश्किल है। इस तरह मादक पदार्थ और शराब बांट कर वे लोगों को नशे के गर्त में धकेल रहे हैं। जब तक उन पर कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं होगी, उनमें शायद ही हिचक पैदा हो। मगर निर्वाचन आयोग को एक नख-दंत विहीन शेर बना कर रखा गया है। इसलिए राजनेता और राजनीतिक दल मनमानी से बाज नहीं आते।