दस लाख रुपए या उससे ज्यादा सालाना आमदनी वाले उपभोक्ताओं को अब रसोई गैस पर सबसिडी नहीं मिलेगी। एक जनवरी से लागू होने जा रहा केंद्र सरकार का यह फैसला स्वागत-योग्य भी है और तार्किक भी। सबसिडी को अधिक युक्तिसंगत बनाने की सरकार की कोशिशों की यह ताजा कड़ी है। देश में इस वक्त एलपीजी यानी रसोई गैस के 16.35 करोड़ कनेक्शनधारक हैं। इनमें से 14.78 करोड़ उपभोक्ताओं को मिलने वाली सबसिडी सीधे उनके खाते में भेजने की ‘पहल’ योजना को सरकार पहले ही सफलतापूर्वक पूरा कर चुकी है। इसके अलावा, प्रधानमंत्री की अपील पर स्वेच्छा से रसोई गैस सबसिडी छोड़ने वालों की तादाद साढ़े सत्तावन लाख है। सरकार के ताजा फैसले से कितने कनेक्शनों पर सबसिडी की बचत होगी, यह अभी साफ नहीं है, पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह एक अच्छी-खासी संख्या होगी। इससे गरीबों के लिए नए कनेक्शन मुहैया कराने में सरकार को सहूलियत होगी।
गौरतलब है कि सबसिडी में कटौती से बचने वाली राशि को सरकार ने उन लोगों के लिए नए एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराने में लगाने की योजना बुनाई हुई है, जो केरोसिन, लकड़ी या उपलों का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह एलपीजी सबसिडी में कटौती को जहां सरकार ने राजकोषीय घाटे का दबाव कम करने के लक्ष्य से जोड़ रखा है वहीं इसका एक पर्यावरणीय पहलू भी है। सबसिडी का चलन कल्याणकारी राज्य की अवधारणा से जुड़ा रहा है। कुछ मदों में सरकारी सहायता की यह नीति पश्चिम में भी अपनाई जाती रही है, और बाजारवादी दौर में भी, कुछ कटौतियों के बावजूद कायम है। लेकिन कोई भी सबसिडी उन्हीं लोगों को मिलनी चाहिए जो उसके हकदार हों। खाद्य सुरक्षा कानून में और कई योजनाओं में लाभार्थियों के लिए कुछ आर्थिक-सामाजिक मापदंड बने हुए हैं। पर रसोई गैस की सबसिडी को मर्यादित करना हमेशा टेढ़ा काम रहा, क्योंकि इस पर तमाम राजनीतिक दल तुरंत विरोध का झंडा उठा लेते थे और मध्यवर्ग की भी नाराजगी झेलने का डर होता था।
रसोई गैस सबसिडी के दायरे से कुछ लोगों को बाहर करने की पहल सबसे पहले 1997 में संयुक्त मोर्चा सरकार के समय हुई थी। फिर, 2002 में वाजपेयी सरकार के समय, जब रामनाईक पेट्रोलियम मंत्री थे। इसके बाद यूपीए के दूसरे कार्यकाल में, जब मंत्रालय की कमान जयपाल रेड््डी के पास थी। लेकिन हर बार राजनीतिक विरोध के चलते तत्कालीन सरकार ने कदम पीछे खींच लिये। उनके ढीले पड़ जाने की बड़ी वजह यही रही होगी कि वे सरकारें गठबंधन पर आश्रित थीं और उन्हें विपक्ष के विरोध से निपटने के साथ-साथ अपने सहयोगी दलों की राजी-खुशी का भी खयाल रखना पड़ता था। ताजा फैसले से रसोई गैस सबसिडी को सीमित करने की बाबत मोदी सरकार ने दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है। इस पर कोई खास नुक्ताचीनी नहीं हुई बल्कि व्यापक रूप से स्वागत ही हुआ है, तो इसकी एक खास वजह यह भी है कि स्वेच्छा से एलपीजी सबसिडी छोड़ने की प्रधानमंत्री की अपील और उसका सकारात्मक जवाब देने वालों की संख्या पचास लाख से ऊपर पहुंच जाने से पहले ही यह माहौल बन गया था कि सब लोग इस सबसिडी के हकदार नहीं हैं। और अगर वे यह लाभ छोड़ दें, तो इससे बचने वाली राशि वंचितों को एलपीजी कनेक्शन देने के काम आ सकती है। इस तरह पूर्व सरकारें जो नहीं कर पार्इं, उसे मोदी सरकार ने कर दिखाया।