महाकुंभ में मची भगदड़ ने पुराने जख्मों को कुरेद दिया है। आजादी के बाद से लेकर अब तक के कुंभ मेलों में कई बार भगदड़ मची है। सैकड़ों लोगों की मौत भी हुई, लेकिन उन सभी हादसों से कभी सबक नहीं लिया गया। हर बार कोई न कोई लापरवाही या व्यवस्था में खामी ही सामने आई। ज्यादातर मामलों में प्रशासन भीड़ को काबू करने में नाकाम रहा। पिछले कुंभ में भी यही हुआ था, जब बड़ी संख्या में प्रयागराज पहुंचे श्रद्धालुओं को रेलवे और जिला प्रशासन संभाल नहीं पाया। स्टेशन पर बने ‘फुटब्रिज’ पर भगदड़ मची और बयालीस लोगों की मौत हो गई थी। इस बार भी ऐसा ही हुआ।

महाकुंभ की सुरक्षा संभाल रहे जिम्मेदार लोगों को पता था कि मौनी अमावस्या पर बड़ी संख्या में लोग स्रान के लिए आएंगे, तो इसकी व्यवस्था उसी के अनुरूप क्यों नहीं की गई। स्पष्ट है कि भीड़ प्रबंधन के ठोस उपाय नहीं किए गए। कोई ज्यादा दिन नहीं हुए, जब कुंभ मेला क्षेत्र में आग लगने की घटना हुई थी। तब से वहां सुरक्षा बंदोबस्त बढ़ा दिए गए थे। ऐसे में लाखों-करोड़ों लोगों के जुटान को देखते हुए कई स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था करने की आवश्यकता थी।

यह दुखद है कि हर कुंभ मेले के आयोजन के बाद और बेहतर तैयारियां तथा सुरक्षा प्रबंध पुख्ता करने के दावे किए जाते हैं। मगर हादसे नहीं थमते। इस बार महाकुंभ से पहले ही अनुमान लगाया जा रहा था कि बड़ी संख्या में श्रद्धालु संगम स्थल पर पहुंचेंगे। कुंभ मेला स्थल तैयार करते समय अनुभवी अधिकारियों को क्या अनुमान नहीं था कि इस बार बेहिसाब भीड़ पहुंचेगी? जितनी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे हैं और जो आंकड़े दिए जा रहे हैं, उस हिसाब से तो कुंभ परिसर और नदी के तट अपर्याप्त हैं।

इस समय उत्तर प्रदेश सरकार का पूरा अमला आयोजन को सफल बनाने में जुटा है। फिर भी कहां कमी रह गई, यह सवाल स्वाभाविक है। संगम पर लगातार भीड़ बढ़ने और उस पर नियंत्रण के लिए पहले से आकलन क्यों नहीं किया गया? यह सुरक्षाकर्मियों की भी लापरवाही है, क्योंकि वे समय पर संकट को भांप नहीं पाए।

मंगलवार और बुधवार की दरम्यानी रात भगदड़ में 30 श्रद्धालुओं की मौत होने बात कही जा रही है। 60 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। इस बीच विपक्षी दलों को भी आयोजन में बदइंतजामी का आरोप लगाने का स्वाभाविक अवसर मिल गया है, लेकिन इसी के साथ यह सवाल उठना लाजिमी है कि तैयारियों में कमी कहां रह गई। इस आयोजन के लिए कई हजार करोड़ की राशि खर्च की गई। अत्यधिक प्रचार का असर यह हुआ कि देश के कोने-कोने में रह रहे श्रद्धालुओं ने संगम में स्रान करने का मानस बना लिया।

नतीजा यह हुआ कि लाखों-करोड़ों लोग अलग-अलग परिवहन साधनों से संगम की ओर चल पड़े। तेरह जनवरी से शुरू हुए इस आयोजन के शुरुआती दौर में ही लाखों श्रद्धालुओं का जुटान होने लगा था। ऐसे में इतने लोगों के लिए पूरे शहर और मेला क्षेत्र में ठहरने के वैकल्पिक प्रबंध करने की आवश्यकता थी। इससे श्रद्धालु एक निश्चित संख्या में क्रम से संगम की ओर जाते और वहां से निकलते जाते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और सभी इंतजाम धरे के धरे रह गए। करोड़ों की भीड़ को संभालने के लिए सात स्तरीय सुरक्षा भी काम नहीं आई। फिलहाल यह हादसा एक बार फिर कड़ा सबक दे गया है।