खाद्य पदार्थों में मिलावट के मामले आम होने की वजह से आज हालत यह है कि कुछ भी खाकर आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता कि वह सुरक्षित और सेहत के लिए फायदेमंद है। मिलावट के कारोबारियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मिलावटी चीजें खाकर लोग बीमार हो गए या उनकी जान ही चली गई। सामान्य दिनों की इस विडंबना के बीच हैरानी की बात यह है कि पर्व-त्योहार के मौकों को भी नहीं बख्शा जाता और सिर्फ कमाई के लिए मिलावटी या फिर खराब हो चुके खाद्य पदार्थ बेचने में कुछ लोगों को हिचक नहीं होती।
त्योहारों पर कुट्टू का आटा खाने से लोग हो रहे बीमार
कई त्योहारों के मौकों पर खबर आती है कि कुट्टू का आटा खाने से कई लोग बीमार हो गए। कई बार इस तरह की घटनाएं सामने आती रहती हैं और अगर कभी कोई मामला तूल पकड़ लेता है तब यह आश्वासन जरूर दिया जाता है कि इस संबंध में जांच और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। मगर हकीकत यह है कि कुछ दिनों के बाद सब भुला दिया जाता है और हादसे होते रहते हैं।
गौरतलब है कि वर्ष भर में आने वाले पर्व-त्योहारों के मौकों पर बहुत सारे लोग फल या अन्य खाद्य पदार्थों के साथ-साथ कुट्टू के आटे का भी सेवन करते हैं। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मथुरा और आगरा में कृष्ण जन्माष्टमी पर उपवास के दौरान कुट्टू के आटे से बना ‘फलाहार’ खाने से पांच गांवों के सौ से ज्यादा लोग बीमार हो गए। कई लोगों की स्थिति ज्यादा गंभीर हो गई।
खबरों के मुताबिक, पीड़ित लोगों ने जहां से कुट्टू का आटा खरीदा था, वहां आटे की आपूर्ति करने वाली दो दुकानें सील कर दी गईं और उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया जा रहा है। मगर सवाल है कि आखिर यह कौन-सी मजबूरी है कि सरकार के संबंधित महकमे या खाद्य सुरक्षा विभाग तब तक लापरवाह बने रहते हैं, जब तक कोई बड़ा हादसा न हो जाए। दूषित खाद्य सामग्री बेचने वालों की जांच और उनके खिलाफ कार्रवाई के मामले में अगर अनदेखी न की जाए, तो शायद इस तरह बड़ी संख्या में लोगों के जीवन पर जोखिम न पैदा हो।
