एक ओर कोलकाता में एक प्रशिक्षु चिकित्सक की बलात्कार के बाद हत्या की बर्बर घटना से समूचे देश में दुख और आक्रोश का माहौल है, सभी ओर से महिलाओं की सुरक्षा के लिए हर स्तर पर कार्रवाई किए जाने की मांग हो रही है, तो दूसरी ओर देहरादून के सार्वजनिक बस अड्डे पर एक नाबालिग से सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आई है। ऐसा लगता है कि आपराधिक मानसिकता के लोगों के भीतर कानून का कोई ऐसा खौफ नहीं है जो उन्हें मनमानी करने से रोक सके।
बाल कल्याण समिति की एक टीम को एक किशोरी बदहवास हालत में मिली
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह देहरादून अंतरराज्यीय बस अड्डे पर बाल कल्याण समिति की एक टीम को एक किशोरी बदहवास हालत में मिली थी। इसके बाद घटना का खुलासा हुआ कि बलात्कार की इस घटना को जिन पांच आरोपियों ने अंजाम दिया था, उनमें बस का चालक और परिचालक भी है। हालांकि पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन इससे एक बार फिर सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं।
अपराध को अंजाम देने वाले बस कर्मचारियों के भीतर पुलिस और कानून का डर
आखिर जिस जगह पर नियमित रूप से बसों और यात्रियों की आवाजाही लगी रहती है, वहां सुरक्षा व्यवस्था की क्या स्थिति थी कि आरोपियों ने आसानी से अपराध को अंजाम दिया? एक सार्वजनिक स्थान पर अपराध को अंजाम देने वाले बस कर्मचारियों के भीतर पुलिस और कानून का डर क्यों नहीं था! फिलहाल देश भर में कोलकाता की घटना पर व्यापक आक्रोश फैला हुआ है, इसके बावजूद सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सजग होना शायद राज्य सरकारों और पुलिस तंत्र की प्राथमिकता में नहीं रही है। देहरादून में नाबालिग से सामूहिक बलात्कार न केवल कोलकाता में हुई घटना के खिलाफ उभरे आंदोलन का असर नहीं होने को दर्शाता है, बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि सरकारी तंत्र किसी त्रासद घटना के बावजूद किस कदर नींद में डूबा रहता है।
इसकी आंख तभी खुलती है, जब कोई घटना तूल पकड़ लेती है। आखिर ऐसे इंतजाम क्यों नहीं किए जाते, जो आपराधिक मानसिकता वाले लोगों के भीतर कानून का डर भर सके और वे किसी वारदात को अंजाम न दे सकें।
यह समझना मुश्किल है कि महिलाओं के खिलाफ लगातार बढ़ते अपराधों पर काबू पाने के लिए कानूनों में सख्ती लाने की कवायदों और आए दिन सरकारों की ओर से महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हर स्तर पर कदम उठाने की घोषणाओं के बावजूद अपराधी बेलगाम होते क्यों दिख रहे हैं। समाज के स्तर पर भी देखें तो बलात्कार की कुछ घटनाओं पर अक्सर देश भर में आक्रोश फैलता है, व्यापक पैमाने पर लोग आंदोलित होते हैं, महिलाओं की सुरक्षा की मांग की जाती है, लेकिन न तो ऐसा माहौल बन पा रहा है जिसमें महिलाएं खुद को सुरक्षित और सहज महसूस करें, न ही बलात्कार और हत्या की घटनाएं रोकी जा पा रही हैं।
ज्यादा त्रासद यह है कि जिनको आदतन अपराधी नहीं माना जाता है, कई बार वे भी संगठित अपराधियों की तरह किसी वारदात को अंजाम देते हैं। देहरादून की घटना में बस के जिन कर्मचारियों की ड्यूटी थी कि वे मुसाफिरों को सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंचाएं, जरूरतमंदों की मदद करें, उन्होंने ही सामूहिक रूप से एक जघन्य अपराध को अंजाम दिया। यह जहां समाज में भी विकृत और आपराधिक मानसिकता के पांव पसारने का सूचक है, वहीं कानून-व्यवस्था कायम रखने और महिलाओं को सुरक्षा देने में सरकार की विफलता का भी सबूत है।