मध्य कोलकाता स्थित एक होटल में लगी आग और जान-माल के नुकसान से फिर यही जाहिर हुआ है कि अग्नि सुरक्षा के उपायों को लेकर लापरवाही का आलम बना हुआ है। आग की लपटों में संवेदना भी दम तोड़ रही है। यह कोलकाता नगर निगम की विफलता ही मानी जाएगी कि थोक बाजार के भीड़भाड़ वाले इलाके में होटल चलाने की अनुमति दी गई। यह तस्वीर पूरे देश में दिखती है। ज्यादातर थोक मंडियों और बाजारों के आसपास नियम-कायदे ताक पर रख होटल खोलने की मंजूरी दे दी जाती है।

बड़ा बाजार के जिस होटल में आग लगी, वहां अट्ठासी अतिथि ठहरे हुए थे। अगर दमकलकर्मियों ने सूझबूझ न दिखाई होती, तो ज्यादा लोगों की मौत होती। फिर भी, उसमें चौदह लोगों की मौत हो गई। इसकी जवाबदेही आखिर किसकी है। आज जब आग लगते ही लोगों को सतर्क करने और आग बुझाने की अत्याधुनिक तकनीकें उपलब्ध हैं, तो इन साधनों के बिना होटल का लाइसेंस कैसे मिल जाता है? हादसे के बाद जांच का आदेश समस्या का कोई हल नहीं है। चिंता इस बात की है कि ऐसी घटनाओं से कभी सबक नहीं लिया जाता।

बड़ाबाजार भीड़भाड़ वाला सघन इलाका है। वहां अनियोजित और अवैध निर्माणों की वजह से समस्या और बढ़ गई है। जिस होटल में आग लगी वहां फलों की मंडी लगती है। हैरानी है कि ऐसे भीड़भाड़ वाले इलाके में अग्निशमन के पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं। होटल की भीषण आग पर काबू पाने में जो मुश्किलें पेश आईं, उससे जाहिर है कि वहां अग्नि सुरक्षा के मूलभूत इंतजाम नहीं थे। गर्मी के मौसम के मद्देनजर आग बुझाने के व्यावहारिक उपाय किए गए होते, तो होटल भट्टी में तब्दील नहीं होता। पहले भी उस इलाके में आग लगने की कई घटनाएं हो चुकी हैं।

मगर, हैरत की बात है कि चाहे स्टीफन कोर्ट अग्निकांड हो या एएमआरआइ अस्पताल में लगी आग, उनसे कोई सबक नहीं लिया गया, जिनमें कई लोगों की मौत हो गई थी। कोलकाता के बीचों-बीच हुई इस घटना पर सवाल उठ रहे हैं, तो इसका जवाब सरकार को देना हो होगा। इससे बचा नहीं जा सकता।