विवादास्पद इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक के भाषणों पर काफी पहले से सवाल उठते रहे हैं। पर अब वे जांच के घेरे में भी आ गए हैं। महाराष्ट्र सरकार ने उनके भाषणों की जांच के आदेश दिए हैं, वहीं केंद्र सरकार ने कहा है कि उनके भाषणों की छानबीन कर समुचित कार्रवाई की जाएगी। नाइक कई सालों से मजहबी भाषण देते आ रहे हैं, उन्हें सुनने वालों की एक बड़ी तादाद रही है। विदेशों में भी। फिर अचानक उन पर शिकंजा कसने की बात क्यों की जा रही है। इसका कारण पिछले दिनों ढाका में हुए आतंकी हमसे से जुड़ा है, जिसमें आतंकियों ने बीस लोगों की हत्या कर दी। बाद में पता चला कि आतंकियों में से एक, जाकिर नाइक से प्रभावित था। अगर किसी के भाषणों का ऐसा असर हो रहा है, तो इससे ज्यादा चिंता की बात और क्या होगी? यह सोच कर चिंता और बढ़ जाती है कि जाकिर के पास प्रचार-प्रसार का अच्छा-खासा तंत्र है; ‘पीस’ टीवी चैनल के जरिए उनके भाषण बरसों से बराबर प्रसारित किए जाते रहे हैं।

उनके भाषण प्रचुर परिमाण में यूट्यूब पर भी बरसों से उपलब्ध रहे हैं। उनकी संस्था इस्लामी रिसर्च फाउंडेशन को विदेशों से खासा चंदा मिलता रहा है, जिसकी जांच की जा रही है, और संस्था के बाहर पहरा बिठा दिया गया है। जाकिर नाइक के बारे में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की कुछ बरस पहले की गई एक प्रशंसात्मक टिप्पणी को लेकर कांग्रेस को बचाव की मुद्रा में आना पड़ा है। यह प्रसंग दर्शाता है कि अगर किसी के पास शिष्यों या अनुयायियों की भीड़ हो तो हमारे राजनीतिक उसके साथ मंच साझा करने में तनिक संकोच नहीं करते, भले उन अनुयायियों के बीच और उनके जरिए चाहे जिस प्रकार के विचारों का प्रसार किया जा रहा हो। इस तरह, राजनीति कट््टरपंथ से लड़ने के बजाय सभी समुदायों में कट्टरपंथ को बढ़ाने का जरिया बन जाती है।

जाकिर इस समय देश से बाहर हैं और वहीं से एक बयान जारी कर उन्होंने कहा है कि उनके धर्मोपदेश से किसी आतंकी घटना के तार जोड़ना ठीक नहीं है, मीडिया में उनकी टिप्पणियां संदर्भ से काट कर दिखाई गई हैं। लेकिन यह पहला वाकया नहीं है जब जाकिर के भाषणों में समस्या नजर आई हो। आइएस से सहानुभूति रखने के आरोप में भारत में जिन संदिग्ध लोगों की गिरफ्तारियां हुई थीं उनमें से कुछ ने जाकिर के भाषणों से प्रभावित होने की बात कही थी। तब किसी तरह की जांच शुरू करने की जरूरत महसूस नहीं की गई। क्यों? अब भी न तो महाराष्ट्र सरकार और न ही केंद्र ने ऐसा कोई स्पष्ट संकेत दिया है कि क्या कार्रवाई की जाएगी। दुविधा की दो वजह हो सकती हैं। एक यह कि कार्रवाई का क्या कानूनी आधार बनाया जाए।

अगर कोई आरोपी किसी किताब या फिल्म से प्रभावित होने की बात कहेगा, तो क्या वैसी ही कार्रवाई हो सकेगी? फिर, एक समस्या व्यावहारिक भी होगी। जो सामग्री प्रचुर मात्रा में इंटरनेट पर हर कहीं उपलब्ध है, उससेकैसे निपटा जाएगा। जाकिर नाइक को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर इस कड़वी हकीकत की तरफ हमारा ध्यान खींचा है कि आतंकवाद से पार पाने के लिए सुरक्षा संबंधी रणनीति और तैयारी काफी नहीं होगी, वैचारिक मुहिम भी छेड़नी होगी, मुसलिम समुदाय की नई पीढ़ी को गुमराह करने वाली प्रचार-सामग्री से बचाना और इस्लाम की एक बेहतर समझ से लैस करना इसका एक अनिवार्य हिस्सा होगा।