अदालतों में व्यक्त न्यायाधीशों के विचारों और बयानों को आम लोग फैसले की कड़ी के रूप में देखते हैं। उसके आधार पर किसी मसले पर सही और गलत के बारे में राय बनाते हैं। मगर कई बार कुछ न्यायाधीशों के मुंह से ऐसी बातें निकल जाती हैं, जो न केवल उनके पद की गरिमा के विरुद्ध होती, बल्कि उनसे समाज में नाहक अनुचित प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है। कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की ऐसी ही टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट को सख्त रुख अख्तियार करना पड़ा।
बंगलुरु के एक मुसलिम बहुल इलाके को ‘पाकिस्तान’ कहा गया
गौरतलब है कि कर्नाटक हाई कोर्ट के जज ने मुकदमे की सुनवाई के दौरान एक महिला वकील की गरिमा को भंग करने वाली आपत्तिजनक टिप्पणी की और बंगलुरु के एक मुसलिम बहुल इलाके को ‘पाकिस्तान’ कह कर संबोधित किया। हैरानी की बात है कि ऐसी टिप्पणियां करते हुए उन्हें यह याद तक न रहा कि वे न्यायाधीश के सम्मानित पद का निर्वाह कर रहे हैं। हालांकि ऐसे संकीर्ण और दुराग्रहपूर्ण विचार किसी भी सामान्य विवेक वाले व्यक्ति को नहीं रखने चाहिए।
स्वाभाविक ही इन टिप्पणियों के सुर्खियों में आने के बाद सभी स्तरों पर लोगों ने चिंता जताई और सुप्रीम कोर्ट ने उनका स्वत: संज्ञान लिया। प्रधान न्यायाधीश की अगुआई वाली पांच जजों की पीठ ने शुक्रवार को कहा कि संवैधानिक अदालत में न्यायाधीशों की टिप्पणियों को लेकर सख्त दिशानिर्देश बनाने की जरूरत है। पीठ के मुताबिक, सोशल मीडिया अदालत की कार्यवाही पर नजर रख रही है, तो हमें कोई भी टिप्पणी करते समय शालीनता बनाए रखनी चाहिए।
समाज में न्यायाधीशों की छवि ऐसी होती है कि उनके वक्तव्यों को लोग न्याय का वक्तव्य समझते हैं। इसलिए ऐसे जिम्मेदार पद का निर्वाह करने वाले व्यक्ति को कोई भी टिप्पणी करते या कुछ भी बोलते हुए हर स्तर पर संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है। मगर अफसोस कि कई बार अदालतों में बैठ कर न्यायाधीश किसी मामले की सुनवाई के दौरान मुकदमे के कानूनी पहलुओं और उसकी बारीकियों पर बात करने के बजाय अनावश्यक रूप से ऐसी टिप्पणियां कर देते हैं, जो सामान्य नैतिकता के लिहाज से भी, किसी रूप में उचित नहीं कही जा सकतीं।