देश में बौद्धिक विमर्श की क्या कोई गुंजाइश है या नहीं? अगर है तो फिर अभिनेता कमल हासन की फिल्म ‘ठग लाइफ’ का विरोध क्या सिर्फ इसलिए होना चाहिए कि उन्होंने कोई ऐसा बयान दिया जो लोगों को पसंद नहीं? मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि विरोध के बजाय इसे बौद्धिक बहस के तौर पर लिया जाना चाहिए था। सेंसर बोर्ड से प्रमाणित होने के बाद भी इस फिल्म के प्रदर्शन को जिस तरह रोका गया, उससे समझा जा सकता है कि विमर्श की कितनी जगह बची है।

सहमति और असहमति के बीच संवाद भी एक रास्ता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अभिनेता ने कुछ असुविधाजनक कहा, तो वह अंतिम सत्य तो नहीं था। लोगों को अलग-अलग विचार रखने का अधिकार है। मगर इस वजह से फिल्म का प्रदर्शन रोका नहीं जा सकता।

प्रमाणपत्र मिलने के बाद भी राज्य सरकार के मौखिक निर्देश और पुलिस की मदद से जिस तरह फिल्म के प्रदर्शन को रोका गया, उससे कई सवाल उठे हैं। सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा है कि लोगों को फिल्म देखने से रोकने के लिए उनके सिर पर बंदूक नहीं तान सकते। फिल्मों और विचारों के माध्यम से अभिनेता कमल हासन अपनी बात मुखर होकर रखते रहे हैं। इस बार वे विवादों में तब घिरे जब उन्होंने अपनी फिल्म ‘ठग लाइफ’ का आडियो जारी करने के समय कन्नड़ भाषा पर टिप्पणी की। इसका राज्य में तीखा विरोध हुआ।

कर्नाटक फिल्म चैंबर आफ कामर्स ने यहां तक कह दिया कि जब तक कमल हासन माफी नहीं मांगेगे, तब तक उनकी फिल्म राज्य में प्रदर्शित नहीं होने दी जाएगी। हालांकि, पांच जून को फिल्म देशभर में प्रदर्शित हो गई, लेकिन कर्नाटक में इसे रोक दिया गया। शीर्ष न्यायालय ने राज्य सरकार से इसकी न केवल वजह पूछी, बल्कि यह भी कहा कि फिल्म देखने से रोकने के लिए नैतिकता के कथित पहरेदारों को सड़कों पर कब्जा व हंगामा करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। निस्संदेह विरोध के डर से राज्य सरकार अपने संवैधानिक दायित्व से मुकर नहीं सकती।