क्रिकेट के प्रशासन में सुधार के मकसद से 2013 में न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता में गठित हुई तीन सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप दी है। समिति की सिफारिशें अगर लागू हुर्इं तो केंद्रीय स्तर से लेकर राज्यों तक क्रिकेट के निजाम की तस्वीर बदल जाएगी। अधिकतर सिफारिशें स्वागत-योग्य हैं और इन्हें लेकर देश भर में सकारात्मक प्रतिक्रिया हुई है। सवाल है कि क्या ये सिफारिशें लागू होंगी? संदेह का कारण यह है कि भारत में क्रिकेट का संचालन करने वाली लॉबी बहुत ताकतवर है। इसमें राजनीतिक, नौकरशाह, उद्योगपति सब शामिल हैं। ये हरगिज नहीं चाहेंगे कि ये सिफारिशें लागू हों, क्योंकि वैसा हुआ तो क्रिकेट के प्रशासन और कारोबार पर लंबे समय से चला आ रहा उनका वर्चस्व टूट जाएगा।
अगर उम्मीद की किरण दिखती है तो इसलिए कि लोढ़ा समिति का गठन सर्वोच्च अदालत के निर्देश पर हुआ था। अदालत ने चाहा तो इन सिफारिशों के क्रियान्वयन का रास्ता साफ हो सकता है। आईपीएल-2013 में मैच फिक्सिंग और सट््टेबाजी की जांच के लिए बनी मुद्गल समिति और लोढ़ा समिति, दोनों के गठन पर एतराज करते समय, और जब भी आरटीआई के दायरे में लाने की मांग उठी, हर बार बीसीसीआई ने जवाब में अपने स्वायत्त होने की ही दलील दी थी। मगर सर्वोच्च अदालत ने दोनों समितियों के गठन में इस तर्क को आड़े नहीं आने दिया। स्वायत्तता का यह मतलब नहीं है कि पारदर्शिता के तकाजे को तिलांजलि दे दी जाए। उसका अर्थ यह भी नहीं हो सकता कि संस्था पर काबिज लोग उस पर अपना नियंत्रण हमेशा बनाए रखें।
लोढ़ा समिति ने बीसीसीआई और साथ ही राज्यों के क्रिकेट संघों के लिए उम्र की भी सीमा तय की है और कार्यकाल की भी। सत्तर साल से ऊपर का व्यक्ति क्रिकेट प्रशासन का हिस्सा नहीं हो सकेगा। अध्यक्ष का कार्यकाल दो बार से ज्यादा न हो, सदस्य के लिए समय-सीमा तीन कार्यकाल की हो। एक व्यक्ति एक पद का नियम लागू हो। बीसीसीआई के रोजमर्रा के कामकाज के संचालन के लिए एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति की जाए। खिलाड़ियों के चयन में पूर्व क्रिकेटरों की भूमिका निर्णायक हो। बीसीसीआई और आईपीएल के लिए अलग-अलग तंत्र हो। समिति ने मंत्रियों और नौकरशाहों को क्रिकेट संघों से अलग रखने की वकालत की है। ये सिफारिशें बहुत काम की हैं। पर कुछ सिफारिशों को लेकर आशंकाएं भी जताई गई हैं।
मसलन, बीसीसीआई को सूचनाधिकार के दायरे में लाने का नतीजा कहीं यह तो नहीं होगा कि खिलाड़ियों के चयन को लेकर संस्था हमेशा सवालों में फंसी रहे। लोढ़ा समिति का मानना है कि बीसीसीआई में एक राज्य एक वोट का सिद्धांत लागू हो। सैद्धांतिक तौर पर यह सुझाव सही लग सकता है, पर व्यवहार में अटपटा। सिफारिश के मुताबिक पूर्वोत्तर के छोटे-छोटे राज्यों का भी एक-एक वोट होगा, जबकि वहां क्रिकेट की वह हैसियत नहीं है जैसी महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में है। इसी तरह सट््टेबाजी को वैध बनाने की सिफारिश भी विवाद का विषय बनी है। फिर, बीसीसीआई चाहे भी तो सट््टेबाजी की बाबत समिति की राय के मुताबिक कदम नहीं उठा सकती, क्योंकि यह मामला उसके नहीं, सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। हो सकता है अदालत के विचार के बाद रिपोर्ट को और तर्कसंगत स्वरूप मिले।