आखिरकार जमीन घोटाला मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय ने गिरफ्तार कर लिया। वे करीब छह महीने से पूछताछ से बचते फिर रहे थे। पूछताछ के लिए सात बार बुलाने के बाद भी वे ईडी के दफ्तर नहीं गए। ईडी ने खुद उनके दफ्तर जाकर पूछताछ की। अभी तक वे यही कह कर बचने का प्रयास कर रहे थे कि आरोपपत्र में उनका नाम नहीं है।

मगर वे ईडी के सामने खुद को बेदाग साबित नहीं कर पाए। उनकी गिरफ्तारी से पहले जिस तरह उनके कार्यकर्ताओं ने शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की, उससे फिर यही जाहिर हुआ कि राजनेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप अब दलगत रस्साकशी का विषय बनते गए हैं। जैसे ही एजंसियां किसी नेता के खिलाफ जांच शुरू करती हैं, उसे केंद्र सरकार की साजिश करार देकर एक तरह से संबंधित व्यक्ति को पाक-साफ करार देने की कोशिशें शुरू हो जाती हैं।

सोरेन पर सेना के स्वामित्व वाली करीब साढ़े चार एकड़ जमीन की खरीद में घोटाले और धनशोधन का आरोप है। मंगलवार को दिल्ली में उनके आवास पर हुई छापेमारी में छत्तीस लाख रुपए नगद और एक महंगी बेनामी गाड़ी भी बरामद की गई थी। इस कार्रवाई के बाद सोरेन ने अपने विधायकों की बैठक बुला कर सरकार बचाने की रणनीति बनाने में जुट गए।

रांची में ईडी के अधिकारी उनसे पूछताछ करते रहे और उनके कार्यकर्ता उनके घर के बाहर प्रदर्शन करते रहे। यह कोई पहला मामला नहीं है, जब किसी नेता से पूछताछ के समय इस तरह शक्ति प्रदर्शन और राजनीतिक नाटक किया गया। इस तरह अब आम लोगों में भी भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर सियासी रंग भर दिया गया है।

इससे भ्रष्टाचार पर लगाम कसने और भ्रष्टाचारियों के प्रति समाज में नकार भाव पैदा करने में मुश्किलें पेश आती हैं। इस मामले में जांच के बाद चौदह लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका था, जिनमें एक भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी और एक राजस्व उपायुक्त भी शामिल हैं। किसी बेबुनियाद आरोप पर इतने लोगों की गिरफ्तारी तो नहीं हो सकती। अगर वे सचमुच बेदाग हैं, तो उनसे अपने पक्ष में सफाई पेश करने की उम्मीद की जाती थी। यह ठीक है कि कुछ मामलों में जांच एजंसियों के कामकाज के तरीके पर भी सवाल उठते रहे हैं, मगर इस आधार पर किसी को भ्रष्टाचार के आरोपों से बचाव का रास्ता नहीं मिल जाता।