Jhalawar School Collapse: विद्यालय में शिक्षक बच्चों को सीख देते हैं कि उन्हें अपना कार्य पूरी लगन, मेहनत और जिम्मेदारी के साथ करना चाहिए। मगर, राजस्थान में झालावाड़ के पिपलोदी गांव स्थित सरकारी विद्यालय के शिक्षक एवं प्रबंधन खुद अपनी जिम्मेदारी भूल गए और जर्जर भवन का एक हिस्सा ढहने से कई घरों के चिराग बुझ गए। हादसे में सात मासूमों की जान चली गई। इस दुखद घटना ने ग्रामीण इलाकों में सरकारी विद्यालयों के बुनियादी ढांचे की स्थिति और व्यवस्थागत प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या शिक्षकों और विद्यालय प्रबंधन को इस बात की जानकारी नहीं थी कि भवन का यह हिस्सा जर्जर हो चुका है और यहां कक्षाएं संचालित करना हादसे को न्योता देना है? अगर सब मालूम था तो ऐसा जोखिम उठाने की क्या वजह रही? पीड़ित परिवार की पीड़ा इन सवालों के जवाब ढूंढ़ रही है।
झालावाड़ के जिला अधिकारी का कहना है कि प्रशासन ने हाल ही में शिक्षा विभाग को किसी भी जर्जर स्कूल भवन की जानकारी देने का निर्देश दिया था, लेकिन इस विद्यालय का भवन सूची में शामिल नहीं था। जब यह हादसा हो गया तो प्रशासन ने इस भवन के दूसरे हिस्से को भी गिरा दिया, ताकि वहां गलती से भी कक्षाएं संचालित न की जाएं। यही नहीं, राज्य सरकार ने अब विद्यालयों की तमाम इमारतों का सुरक्षा सर्वेक्षण कराने के निर्देश भी दिए हैं। मगर, सवाल है कि शासन-प्रशासन की ओर से ऐसी सतर्कता किसी हादसे के बाद ही क्यों दिखाई देती है?
क्या ऐसी लापरवाही इसलिए बदस्तूर चलती रहती है कि ऐसे स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे आमतौर पर समाज के हाशिये के तबके से आते हैं? अगर जिला अधिकारी की ओर से कोई निर्देश दिया जाता है तो उस पर अमल सुनिश्चित करना किसकी जिम्मेदारी है? यह हादसा सिर्फ एक बानगी है, देशभर में न जाने कितने विद्यालय जर्जर इमारतों में संचालित हो रहे हैं। राज्य सरकारों को चाहिए कि ऐसी इमारतों की पहचान कर उन्हें असुरक्षित घोषित किया जाए। साथ ही लापरवाही बरतने वालों की जवाबदेही तय कर उनके खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए, ताकि विद्यालयों में बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ न हो।