दिल्ली उच्च न्यायालय ने नौसेना की महिला अधिकारियों के साथ लंबे समय से चले आ रहे भेदभाव की समाप्ति का रास्ता साफ कर दिया है। निश्चय ही अदालत का यह फैसला स्वागत-योग्य है। अदालत का आदेश है कि नौसेना की महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया जाए; उनके साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता, न उन्हें आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। गौरतलब है कि सेना के इस अंग में अफसर चाहे पुरुष हों या महिलाएं, उनकी नियुक्ति शॉर्ट टर्म कमीशन में यानी चौदह साल के लिए की जाती है। अभी तक होता यह रहा है कि महिला अधिकारियों को तो चौदह वर्षों के बाद सेवानिवृत्त कर दिया जाता है, पर पुरुष अधिकारियों को स्थायी कमीशन दे दिया जाता है।

जाहिर है, यह साफ तौर पर लैंगिक भेदभाव है जो हमारे संविधान के एक बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि महिलाएं हर क्षेत्र में बढ़ कर हिस्सा ले रही हैं और हर तरफ कामयाबी हासिल कर रही हैं। ऐसे में उन्हें स्थायी कमीशन मात्र इस आधार पर न देना कि वे महिलाएं हैं, गलत है। जब एक तय सेवा-काल के बाद पुुरुषों को स्थायी करने का प्रावधान है, तो महिलाओं की बाबत क्यों नहीं होना चाहिए? कायदे से इस तकाजे को सरकार को ही पूरा कर देना चाहिए था। पर रक्षा मंत्रालय बरसों से आनाकानी में ही लगा रहा। आखिरकार नौसेना की उन्नीस महिला अफसरों के समूह ने याचिका के जरिए अदालत की शरण ली। याचिका में लैंगिक आधार पर होते आ रहे विषमतापूर्ण व्यवहार का मुद््दा उठाते हुए यह भी कहा गया था कि भर्ती के समय सरकार उन्हें उज्ज्वल भविष्य का भरोसा दिलाती है, पर पैंतीस वर्ष की उम्र में ही सेवानिवृत्त कर दिया जाता है।

मामले की सुनवाई के दौरान मंत्रालय ने विचित्र दलील दी कि स्थायी कमीशन देने का निर्णय सरकार ने इसलिए टाल दिया, क्योंकि सभी जहाजों पर स्त्रियों के लिए सुविधाएं नहीं हैं। इस तर्क को अदालत ने सिरे से खारिज कर दिया। स्थायी कमीशन न मिलने से नौसेना की महिला अफसरों के साथ होती आ रही नाइंसाफी का अंदाजा लगाया जा सकता है। वे न केवल चौदह वर्षों के बाद सेवानिवृत्त कर दी जाती रही हैं, बल्कि पेंशन की भी हकदार नहीं हो पाती थीं, क्योंकि इसके लिए आवश्यक न्यूनतम बीस वर्षों के सेवा-काल की शर्त पूरी करना उनके लिए संभव नहीं था। अदालत के फैसले ने जहां उन्हें पुरुषों के समान सेवा-काल का हकदार बनाया है, वहीं उनके लिए पेंशन-सुविधा की भी राह खोली है। नौसेना की महिला अफसरान दोहरे भेदभाव का शिकार रही हैं। जुलाई में रक्षामंत्री मनोहर पर्रीकर ने संसद को बताया कि सेना में तीन सौ चालीस महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन दिया गया है। पर इन सभी का ताल्लुक वायुसेना से है। जब सेना के एक अंग में उन्हें यह दर्जा दिया जा सकता है, तो दूसरी शाखा में ऐसा प्रावधान करने के लिए सरकार गंभीर क्यों नहीं थी?

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