इंजीनियरिंग, चिकित्सा विज्ञान जैसे पेशेवर पाठ्यक्रमों में प्रवेश और विभिन्न नौकरियों के लिए होने वाली परीक्षाओं को लेकर गड़बड़ी के समाचार जब-तब आते रहे हैं। कभी कोई परचा लीक हो जाता है तो कभी अभ्यर्थी की जगह कोई और परीक्षा देते पकड़ा जाता है। लेकिन उत्तर प्रदेश संघ लोक सेवा आयोग इन दिनों अपने एक प्रश्नपत्र को लेकर जिस वजह से विवाद में घिर गया है वह अलग तरह का है। इस प्रश्नपत्र ने परीक्षा का जैसा कुत्सित नमूना पेश किया है उसका दूसरा उदाहरण शायद ही मिले। पिछले दिनों कनिष्ठ अधिकारियों की भर्ती की खातिर आयोग की तरफ से हुई परीक्षा के सामान्य ज्ञान के प्रश्नपत्र में महात्मा गांधी के बारे में पूछे गए एक सवाल का जवाब देने के लिए चार विकल्प दिए गए थे। इस तरह के प्रश्न में कोई विकल्प ऐसा जरूर रहता है जिसे चुनना सही उत्तर माना जाए। अगर ऐसा न हो, तो ‘इनमें से कोई नहीं’ का विकल्प भी दिया जाता है।
गांधी के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देने के लिए जो चार विकल्प दिए गए थे उनमें से किसी का भी चुनाव नहीं किया जा सकता, वैसा करना सिरे से गलत होगा। चार खानों में से चुन कर बताना था कि गांधी किस बात के लिए जाने जाते हैं। एक खाना आजादी के आंदोलन में उनकी निष्क्रिय भूमिका था, दूसरा खाना इस्लामिक राज्य की स्थापना के लिए उनके प्रयत्न का। तीसरे खाने में हिंदुओं के लिए राजनीतिक कार्यालय खोलने के गांधी के विरोध का, और चौथे विकल्प में छपा था कि गांधीजी ने अंगरेजी हुकूमत के खात्मे के लिए हिंसा को प्रोत्साहित किया। जाहिर है, इनमें से किसी भी खाने को चुनना सही नहीं माना जा सकता। ऐसे में, ‘इनमें से कोई नहीं का विकल्प’ दिया गया होता, तो वही सही जवाब होता। लेकिन इसकी गुंजाइश नहीं छोड़ी गई। चार विकल्पों में से ही किसी एक को चुनने के लिए अभ्यर्थियों को विवश किया गया। ऐसे में, कहने की जरूरत नहीं कि यह प्रश्न कितना आपत्तिजनक था। आयोग के प्रश्नपत्र विशेषज्ञ तैयार करते हैं। ऐसा प्रश्न कैसे रखा गया, जो गांधी के बारे में गलत जवाब देने के लिए बाध्य करता हो? उत्तर प्रदेश सरकार को इसकी तह में जाना चाहिए, कि आखिर इसके पीछे किसका हाथ था? यह किसी शब्द या वाक्य की छपाई में त्रुटि का मामला नहीं है।
यह प्रश्न गांधीजी के बारे में सुनियोजित दुष्प्रचार का हिस्सा ही जान पड़ता है। और यह कोई अलग-थलग घटना नहीं है। एक ओर गांधीजी की छवि खराब करने वाला प्रश्न पूछा गया, और दूसरी ओर, गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को महिमामंडित करने के कई प्रयास सामने आए हैं। महाराष्ट्र में कुछ लोगों ने ‘गोडसे शौर्य दिवस’ मनाया तो भाजपा के सांसद साक्षी महाराज ने गोडसे को देशभक्त करार दिया। यह सब क्या हो रहा है? प्रधानमंत्री गांधी जयंती पर स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत करते हैं, अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान गांधी प्रतिमा का अनावरण करते हैं और कहते हैं कि गांधीजी से उन्हें हमेशा प्रेरणा मिलती रही है। पर उनके हाथ में केंद्र की सत्ता आने के बाद ऐसे तत्त्वों का हौसला क्यों बढ़ गया है, जो गांधी को खलनायक और उनके हत्यारे को नायक साबित करना चाहते हैं? क्या इसी इतिहास-बोध के साथ देश के ‘अच्छे दिन’ आएंगे?
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