रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के बयान पर स्वाभाविक ही विवाद उठा है। उन्होंने कहा कि कुछ पूर्व प्रधानमंत्रियों ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर देश की खुफिया सूचना संपदा यानी ‘डीप एसेट्स’ के साथ समझौता किया था। उन्होंने स्पष्ट नहीं किया कि इससे उनका क्या तात्पर्य है। क्या उनका इशारा देश की खुफिया एजेंसियों की तरफ से उपलब्ध कराई सूचनाओं की तरफ है या फिर उन सहयोगी देशों की खुफिया एजेंसियों की तरफ जो गुपचुप तरीके से रक्षा संबंधी सूचनाएं मुहैया कराती रही हैं। पर्रिकर का यह बयान पाकिस्तान की तरफ से आई गुजरात तट की तरफ बढ़ती उस संदिग्ध नौका के बारे में पूछे जाने पर आया, जो बीच समंदर में विस्फोट के बाद ध्वस्त हो गई थी। अब तक उससे जुड़े तथ्य हाथ नहीं लगे हैं। तब पर्रिकर ने कहा था कि उस नौका में आतंकवादी सवार थे और सुरक्षा बलों की तरफ से चुनौती मिलने के बाद उन्होंने खुद को बम से उड़ा लिया था। इस पर कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों ने सबूत की मांग की थी। वे अब तक उस मामले में कुछ तथ्य पेश नहीं कर पाए हैं। शायद यही वजह हो कि उन्होंने कांग्रेस और दूसरे दलों के प्रधानमंत्रियों को रक्षा संबंधी मामलों में लापरवाही बरते जाने के घेरे में लाकर अपना बचाव करने की कोशिश की। मगर राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मसले पर किसी रक्षामंत्री से ऐसे हल्के बयान की अपेक्षा नहीं की जा सकती। उनके बयान पर सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने नामों के खुलासे की मांग की। फिर कांग्रेस उन्हें घेरने में जुटी है।

यह सही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के जुड़ी खुफिया सूचनाओं का सार्वजनिक रूप से खुलासा नहीं किया जा सकता, मगर पर्रिकर को यह नहीं भूलना चाहिए कि पूर्व प्रधानमंत्रियों पर अंगुली उठा कर खुद उन्होंने ऐसा ही किया। क्या उनके इस बयान से दूसरे देशों में यह संदेश नहीं गया कि भारत में शीर्ष स्तर पर रक्षा संबंधी सूचनाओं के मामले में लापरवाही बरती जाती है! पश्चिम बंगाल के बर्दवान में हुए बम विस्फोटों के बाद भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने वहां सार्वजनिक मंच से कहा था कि सारदा घोटाले का पैसा बांग्लादेश पहुंचाया गया और उसी की मदद से आतंकवादियों ने यह विस्फोट किया था। उससे भी देश की सुरक्षा-व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए थे। अपने विरोधी दलों पर निशाना साधना गलत नहीं है, लेकिन रक्षा संबंधी मामलों को राजनीतिक बयानबाजी का विषय बनाना किसी भी रूप में उचित नहीं कहा जा सकता। पर्रिकर अभी तक चुप्पी साधे हुए हैं कि ‘डीप एसेट्स’ से उनका क्या तात्पर्य है। उनका इशारा रक्षा खरीद में हुए घोटालों की तरफ नहीं माना जा सकता। अगर ऐसा होता तो उन्हें नाम लेने से गुरेज न होती, क्योंकि वे खुलासे अब सार्वजनिक हैं। अगर उनका बयान खुफिया सूचनाओं के साथ छेड़छाड़ से जुड़ा हुआ है, तो निस्संदेह यह गंभीर मामला है। अगर सचमुच उनके पास इससे जुड़े तथ्य हैं तो भी, उसका राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के बजाय उनका जोर रक्षामंत्री के तौर पर उन सूराखों को बंद करने के उपाय जुटाने पर होना चाहिए, जिनसे होकर सूचनाएं बाहर निकलती रही हैं। अगर वे अपनी कही बातों से जुड़े सबूत इसलिए नहीं पेश करना चाहते कि उससे पूर्व प्रधानमंत्रियों की नाहक बदनामी होगी या फिर अनियमितताओं के नए आयाम खुलेंगे, तो सवाल है कि इतने सहज भाव से उन्होंने यह बात कह क्यों दी। क्या इसे एक जिम्मेदार नेता का बयान कहा जा सकता है!

 

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