इस बार के गणतंत्र दिवस समारोह को लेकर जिस तरह राजनीतिक पक्षपात के आरोप सामने आए हैं, वैसा शायद पहले कभी नहीं हुआ। राजपथ पर होने वाली परेड में पश्चिम बंगाल की झांकी शामिल न किए जाने पर वहां की सरकार पहले से नाराज चल रही थी। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इस समारोह में शामिल होने का न्योता न भेजे जाने से एक अलग मुद्दा जुड़ गया। अब कहा जाने लगा है कि अकेले पश्चिम बंगाल नहीं, तमाम गैर-भाजपा सरकारों वाले राज्यों की झांकियां परेड में शामिल नहीं की गर्इं। गणतंत्र दिवस परेड का मकसद सामरिक और सांस्कृतिक झलकियों के साथ-साथ देश की संघीय व्यवस्था की मुकम्मल तस्वीर भी पेश करना होता है। इसलिए सभी राज्यों की महत्त्वपूर्ण योजनाओं, वहां की सांस्कृतिक विविधता आदि को राजपथ पर झांकी के रूप में उतारने की कोशिश की जाती है। पश्चिम बंगाल सरकार ने अपनी महत्त्वाकांक्षी योजना कन्याश्री पर आधारित झलकी भेजने की पेशकश की थी, जिसे रक्षा सचिव की निगरानी में काम करने वाली गणतंत्र दिवस झांकी समिति ने अस्वीकृत कर दिया। हालांकि इसी से मिलती-जुलती केंद्र सरकार की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से संबंधित झांकी परेड में शामिल कर ली गई। जबकि केंद्र सरकार की योजना गणतंत्र दिवस से कुछ दिन पहले ही घोषित की गई थी। सुरक्षा और समय आदि को ध्यान में रखते हुए परेड की व्यवस्था देखने वाली समिति किसी कार्यक्रम में काट-छांट कर सकती है। मगर जैसा कि पश्चिम बंगाल सरकार आरोप लगा रही है और परेड में गैर-भाजपा शासित राज्यों को बाहर रखा गया, इसके पीछे अगर कोई दलगत आग्रह था तो इसे किसी भी रूप में संघीय व्यवस्था के अनुरूप नहीं कहा जा सकता।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को न्योता न भेजे जाने पर सबसे अधिक मुखर किरण बेदी को देखा जा रहा है, जिन्हें आगामी विधानसभा में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार घोषित किया गया है। सवाल यह नहीं है कि न्योता भेजना न भेजना सरकार की इच्छा पर निर्भर है। गणतंत्र दिवस समारोह केंद्र सरकार का निजी उत्सव नहीं होता। परंपरा रही है कि उसमें पक्ष-विपक्ष के सभी पदाधिकारियों, पूर्व मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, सेना के अधिकारियों आदि को आदरपूर्वक बुलाया जाता है। केजरीवाल को नहीं बुलाया गया और भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार को बुला कर पहली कतार में बिठाया गया तो स्वाभाविक ही इसे मोदी सरकार और भाजपा के पूर्वग्रह के रूप में देखा जा रहा है। फिर जिस तरह सरकारी छाया वाला दूरदर्शन का कैमरा बार-बार भाजपा नेताओं, पदाधिकारियों, यहां तक कि किरण बेदी की तरफ केंद्रित होता रहा, उससे यह भी सवाल उठा है कि इस समारोह के प्रसारण का अधिकार निजी क्षेत्र के चैनलों को भी क्यों नहीं दिया जाना चाहिए। आज जब तमाम कार्यक्रमों के प्रसारण में खुलापन आया है, निजी चैनलों को भी जगह दी जाने लगी है, गणतंत्र दिवस परेड के सीधा प्रसारण से उन्हें क्यों दूर रखा जाना चाहिए। गणतंत्र दिवस समारोह के प्रसारण से अगर किसी व्यक्ति को राजनीतिक लाभ या किसी दल को विशेष महत्त्व मिलता दिखे तो ऐसी प्रवृत्ति पर रोक लगाने के उपाय होने चाहिए। गणतंत्र दिवस समारोह पूरे देश और सभी नागरिकों का समारोह होता है, उसमें राजनीतिक दुराग्रह के चलते किसी पदाधिकारी या राज्य सरकार के कार्यक्रम को अलग रखने और सिर्फ अपनी पसंद के लोगों को शामिल करने की कोशिश की जाती है तो इसे स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था का लक्षण नहीं कहा जाएगा।
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