पाकिस्तान के बलूचिस्तान में एक बार फिर बड़ा बम विस्फोट हुआ। जुमे की नमाज और ईद-ए-मिलाद उन नबी के मौके पर जब लोग इकट्ठा थे, दो मस्जिदों के बाहर जबरदस्त धमाके हुए, जिसमें कम से कम छप्पन लोगों के मारे जाने और करीब एक सौ तीस के गंभीर रूप से घायल होने की पुष्टि हुई है। आजादी के बाद से ही बलूचिस्तान में चरमपंथी गतिविधियां बढ़ती रही हैं।
मगर पाकिस्तान सरकार उस पर काबू पाने के लिए राजनीतिक रास्ता अख्तियार करने के बजाय बंदूक का सहारा लेती रही है। इसका नतीजा यह हुआ है कि उस इलाके में चरमपंथी संगठन अब सेना को चुनौती देने की स्थिति में पहुंच गए हैं। 2005 के बाद जब पाकिस्तानी सेना ने बड़े पैमाने पर बलूचों का सफाया करना शुरू किया, तो चरमपंथ और ताकतवर होता गया।
उसके बाद से उस इलाके में कई बड़े बम धमाके हुए हैं, जिनमें बड़े पैमाने पर लोग मारे जा चुके हैं। पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था अब इस पर काबू पाने में पूरी तरह विफल नजर आती है। उल्टा कुछ मौकों पर पाकिस्तानी हुक्मरान पलट कर बलूचिस्तान में अशांति का जिम्मेदार भारत को ठहराने की कोशिश करते देखे गए।
दरअसल, बलूच लोगों की शुरू से शिकायत रही है कि भूभाग के हिसाब से उन्हें न तो राजनीतिक हिस्सेदारी मिली है और न आर्थिक। बलूचिस्तान पाकिस्तान का करीब चालीस फीसद हिस्सा है, मगर इतना गरीब और पिछड़ा हुआ है कि बच्चों के लिए माकूल मदरसे तक नहीं हैं। बलूच लोग पाकिस्तान से अलग अपना स्वायत्त शासन चाहते हैं। मगर पाकिस्तान की हुकूमत उन्हें बंदूक के बल पर खामोश करने की कोशिश करती रही है।
विचित्र है कि पाकिस्तान अपने यहां के एक बड़े हिस्से में व्याप्त अलगाववाद को तो संभाल नहीं पाता, मगर भारत के कश्मीर में अलगाववाद की आग जलाए रखने की हर कोशिश करता है। वह खुद जिस आग में जल रहा है, वही आग भारत में लगाए रखना चाहता है। इसके लिए उसकी सेना और खुफिया एजंसी बेपनाह पैसा खर्च करती हैं।
अभी कुछ दिनों पहले वहां के विदेशमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र के मंच पर फिर से कश्मीर की स्वायत्तता का राग अलापा। इसके पहले अनेक मौकों पर उसके प्रधानमंत्री और दूसरे आला नेता अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं। इस मामले को सुलझाने के लिए तीसरे पक्ष की मध्यस्थता तक की बात करते रहे हैं। मगर बलूचिस्तान, जो उसकी जमीन का हिस्सा है, वहां फैले असंतोष को दूर करने को लेकर वह कभी इस तरह फिक्रमंद नहीं दिखा।
दरअसल, पाकिस्तान अपनी जमीनी हकीकत पर परदा डालने के मकसद से भी भारत के हिस्से वाले कश्मीर में अशांति पैदा करने की कोशिश करता है। जिस दिन वह अपनी असल समस्याओं को सुलझाने को लेकर संजीदा होगा, उस दिन शायद उसे बलूचिस्तान का दर्द समझ में आएगा और कश्मीर में नाहक दखलंदाजी का मोल भी। मगर शुरू से ही वह महाशक्तियों का मोहरा बन कर कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ करवट बदलता रहता है।
पहले अमेरिका के पाले में जाकर उसने इमदाद बटोरी, अब चीन के पहलू में बैठा हुआ है। फिलवक्त उसकी स्थिति यह है कि रोजमर्रा के खर्चे के लिए भी उसे कर्ज लेना पड़ता है। सेना की बादशाहत से वहां की हुकूमत मुक्त नहीं हो पा रही। ऐसे में न केवल बलूचिस्तान, बल्कि पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में भी गहरा असंतोष है। जब तक वह हकीकत से आंखें नहीं मिलाएगा, उसे दहशतगर्दी की आग में झुलसते रहना पड़ेगा।