पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे को लेकर फिर से नया विवाद खड़ा करने की जो कोशिश की है, उससे साफ है कि उसका मकसद समस्या का समाधान करना नहीं, बल्कि उसे उलझाए रखना और नए-नए विवाद खड़े करना है। ताजा विवाद यह है कि कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने भारत सरकार को दरकिनार करते हुए कश्मीरी अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टरपंथी नेता सैयद अली शाह गिलानी से बात की। यह बातचीत कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने की योजना के बारे में की गई और फिर लंदन में कुरैशी ने कश्मीर पर आयोजित दो कार्यक्रमों में इसे उठाया भी। पाकिस्तानी विदेश मंत्री के इस कदम पर भारत का नाराज होना स्वाभाविक है। भारत ने तत्काल इस पर नाराजगी व्यक्त की और नई दिल्ली में इस्लामाबाद के प्रतिनिधि को बुला कर आपत्ति दर्ज कराई। सवाल है कि आखिर पाकिस्तान के विदेश मंत्री को कश्मीर जैसे गंभीर मुद्दे पर अलगाववादी नेताओं से बात क्यों करनी चाहिए? ये अलगाववादी नेता तो वे हैं जो भारत सरकार को तवज्जो नहीं देते और वार्ताओं के प्रस्ताव को ठुकराते आए हैं। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि कश्मीर के अलगाववादी नेता पाकिस्तान की शह पर काम करते हैं।

कश्मीर मुद्दे को लेकर जब-जब भारत ने सकारात्मक रुख दिखाया है और वार्ता के लिए पहल की है, तभी पाकिस्तान कोई न कोई ऐसी चाल चल देता है जिससे सारी कवायद पर पानी फिर जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी ओर से सदाशयता दिखाते हुए लाहौर यात्रा की पहल की थी और उसका बदला पाकिस्तान ने करगिल युद्ध के रूप में दिया। इसके बाद भारत की संसद और मुंबई के हमले जैसी घटनाओं को अंजाम दिया। हाल में अलगाववादी नेताओं से बात कर पाकिस्तान ने रिश्तों को बिगाड़ने की दिशा में ही कदम बढ़ाया है। पाकिस्तान को अगर कश्मीर के मामले में कोई भी बात करनी है तो भारत की सरकार से करनी चाहिए थी। ऐसी वार्ताओं के लिए एक निर्धारित राजनयिक प्रक्रिया होती है। अगर भारत की निर्वाचित सरकार को दरकिनार करके पाकिस्तान अलगाववादी नेताओं से बात करता है तो साफ है कि वह उन्हीं गुटों को बढ़ावा दे रहा है जो भारत के खिलाफ काम कर रहे हैं और कश्मीर घाटी में हिंसा व अलगाववाद फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं। यह इस हकीकत को भी पुष्ट करता है कि कश्मीर के अलगाववादी नेता पाकिस्तान के इशारे पर चलते हैं और घाटी में अशांति पैदा करने में इनकी बड़ी भूमिका है।

कश्मीरी अलगाववादियों से बातचीत के बाद कुरैशी ने कहा भी था कि वे हाउस ऑफ कॉमंस में कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे। लेकिन ब्रिटेन ने इससे साफ इनकार कर दिया और कुरैशी को मुंह की खानी पड़ गई। कश्मीर को लेकर भारत हमेशा से एक ही बात कहता आया है कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है और रहेगा और इस बारे में किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का प्रश्न ही नहीं उठता। ऐसे में फिर ब्रिटेन में कश्मीर का राग अलाप कर कुरैशी सिर्फ सहानुभूति बटोरने से ज्यादा कुछ नहीं कर रहे। दरअसल, आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान बेनकाब हो चुका है। भारत शुरू से कहता आया है कि वह तब तक कोई बात नहीं करेगा जब तक पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद और कश्मीर में उग्रवादियों को समर्थन देना बंद नहीं करता। कुरैशी अगर भारत सरकार को नजरअंदाज कर अलगाववादियों से सीधे बात करते हैं तो जाहिर है कश्मीर को लेकर पाकिस्तान का रुख क्या होगा!