राजमार्गों के विकास सहित एक्सप्रेस-वे जैसी चौड़ी सड़कों का मकसद वाहनों की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करना था। लेकिन निजी-सार्वजनिक भागीदारी यानी पीपीपी मॉडल के तहत बनी सड़कों पर वाहनों से टोल टैक्स वसूलने की जिस हद तक छूट दी गई, उस पर अब नियंत्रक एवं महा लेखा परीक्षक ने भी सवाल उठाए हैं। कई मामलों में खुद सरकार ने राजमार्गों का विकास करने वाली निजी कंपनियों को टोल वसूली के लिए निर्धारित से ज्यादा समय दे दिया। कैग की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि कुछ निजी कंपनियों के प्रति सरकार के उदार रवैए के चलते दिल्ली-आगरा सहित नौ राजमार्गों पर वाहनों से पथ-कर के रूप में कुल करीब अट्ठाईस हजार छियानबे करोड़ रुपए ज्यादा वसूली होगी। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की साझेदारी वाली परियोजनाओं के क्रियान्वयन पर संसद में पेश की जा चुकी कैग की रिपोर्ट के मुताबिक प्राधिकरण कुछ मार्गों पर टोल संग्रह शुरू करने में विफल रहा, जिसके चलते उसे दो सौ उनसठ करोड़ रुपए का नुकसान उठाना पड़ा। एक ओर सड़क का इस्तेमाल करने वालों पर ज्यादा बोझ डाल दिया गया है, वहीं प्राधिकरण को पथ-कर वसूली में बड़े नुकसान के अलावा गलत परियोजना प्रकल्पों के कारण भी आठ सौ सत्तावन करोड़ रुपए से हाथ धोना पड़ा। दूसरी ओर, टोल-वसूली के लिए लंबी छूट-अवधि के जरिए संबंधित निजी कंपनियों को अट्ठाईस हजार करोड़ से ज्यादा का बेजा फायदा होगा। सवाल है कि आखिर किन वजहों से प्राधिकरण ने सड़क की कुल वहन क्षमता के बजाय केवल पथ-कर योग्य यातायात को विचार के लायक माना और उसे आधार बना कर टोल वसूली के लिए अवधि-निर्धारण में अनुचित छूट दी?
यातायात को सुचारु बनाने के मकसद से निर्मित की गई सड़कों पर टोल टैक्स की वसूली एक समस्या बनती गई है। महाराष्ट्र, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में टोल में मनमानी बढ़ोतरी के खिलाफ कई बार लोगों का गुस्सा हिंसा या उपद्रव के रूप में फूटा है। विरोध जताने के इस तरीके का पक्ष नहीं लिया जा सकता। पर जैसा कि कैग की रिपोर्ट से भी जाहिर है, टोल के तौर पर लोगों से ज्यादा कीमत वसूली जा रही है। मसलन, दिल्ली से जयपुर, आगरा जैसे शहरों को जोड़ने वाली कई सड़कें सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत बनाई गई हैं। इन सड़कों को तैयार करने वाली कंपनियां बरसों से टोल वसूलती रही हैं। जबकि कई जगहों पर इन सड़कों को बनाने पर आया खर्च और मुनाफा काफी पहले ही वसूला जा चुका है। इसके अलावा, टोल टैक्स की दरों में आए दिन बढ़ोतरी कर दी जाती है, जबकि कई जगह सड़कों की हालत सफर करने लायक नहीं होती। लगभग पांच महीने पहले एक मामले की सुनवाई करते हुए जयपुर उच्च न्यायालय ने राज्य में जयपुर-दिल्ली राजमार्ग पर काम पूरा होने से पहले ही टोल वसूली शुरू कर देने और सड़क की खराब हालत पर सख्त एतराज जताया था। लेकिन अदालत की उस फटकार के बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ा। खुद राजस्थान के एक मंत्री ने पिछले दिनों कहा कि दुर्घटनाओं के लिए सड़कों की दुर्दशा जिम्मेवार है। कैग की रिपोर्ट कहती है कि प्राधिकरण रोजाना बीस किलोमीटर सड़क निर्माण का लक्ष्य भी नहीं पा सका। फिर पीपीपी मॉडल का हासिल क्या है?
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