दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के घर और दफ्तर पर पड़े सीबीआइ छापों के बाद एक बार फिर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच तलवारें खिंच गर्इं। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आनन-फानन इन छापों के पीछे प्रधानमंत्री का हाथ बता कर उन्हें जली-कटी सुना डाली। इस घटना से वे इस कदर विचलित हो उठे कि भाषा का संयम भी खो बैठे। जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है, केंद्र के साथ लगातार उसकी तकरार बनी हुई है। पहले सरकार में अफसरों की तैनाती को लेकर उपराज्यपाल के हस्तक्षेप के चलते काफी समय तक अधिकार क्षेत्र से जुड़े मुद्दे गरम रहे। फिर दिल्ली पुलिस के रवैए को लेकर अंगुलियां उठती रहीं।
ऐसे में सीबाआइ छापों को लेकर फौरी तौर पर केंद्र की तरफ ध्यान जाना स्वाभाविक था। मगर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बिना यह जाने कि सीबीआइ ने छापे आखिर क्यों डाले और उसका मकसद क्या था, जिस तरह बयान दे डाला, वह एक परिपक्व और जिम्मेदार राजनेता का कदम नहीं माना जा सकता। जब उन्हें पता चला कि छापे उनके नहीं, बल्कि उनके एक अधिकारी के दफ्तर पर डाले गए हैं तब उन्होंने सीबीआइ के मकसद पर अंगुली उठाते हुए कहा कि वह दिल्ली जिला क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़ी वह फाइल तलाशने आई थी, जिसमें केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली फंस सकते हैं। इस छापे के निशाने पर उन्होंने खुद को साबित करने की कोशिश की।
हालांकि सीबीआइ पर केंद्र के इशारे पर काम करने के आरोप बहुत पहले से लगते रहे हैं। उसके रवैए को लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक तीखी टिप्पणी कर चुका है। मगर सरसरी तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि बिना किसी पुख्ता प्रमाण के सीबीआइ किसी के भी खिलाफ जांच की पहल कर सकती है। दिल्ली सरकार में प्रधान सचिव के कार्यालय पर उसने बगैर किसी आधार के छापे नहीं मारे। उनके विरुद्ध पिछली तैनातियों के दौरान शिक्षा, सूचना तकनीक और स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी परियोजनाओं में कुछ ठेकेदारों को बेजा लाभ पहुंचाने की शिकायतें थीं।
उनकी छानबीन के आधार पर ही सीबीआइ ने मामला दर्ज किया और जांच के लिए आगे कदम बढ़ाया। अरविंद केजरीवाल थोड़े धैर्य और संयम से इस मामले को समझने की कोशिश करते तो इस तरह केंद्र के साथ टकराव की नौबत नहीं आती। जहां तक उन्हें सूचित करने की बात है, सीबीआइ को यह अधिकार है कि वह मुख्यमंत्री को सूचित किए बगैर किसी अधिकारी के घर और दफ्तर पर छापे मार सकती है। अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार खुद भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ाई से निपटने की वचनबद्धता दोहराते रहे हैं, ऐसे में अगर सीबीआइ ने उनके सबसे करीब बैठे एक अधिकारी की करतूतों की पोल खोलने के लिए कदम उठाया तो उन्हें इसका स्वागत करना चाहिए था।
उनका इस बात पर अड़े रहना कि सीबीआइ ने केंद्र के इशारे पर उन्हें निशाना बनाया, न सिर्फ सीबीआइ की छवि को खराब करेगा, बल्कि यही जाहिर करेगा कि वे एक भ्रष्ट अधिकारी के पक्ष में दीवार बन कर खड़े हैं। वैसे ही केंद्र के साथ उनकी तनातनी के चलते सरकार के बहुत सारे कामकाज प्रभावित हो रहे हैं। अगर दोनों के बीच इसी तरह टकराव और अबोलापन बना रहा तो आखिरकार उसके नतीजे आम लोगों को भुगतने पड़ेंगे। अरविंद केजरीवाल से अपेक्षा की जाती है कि हर मामले को राजनीतिक रंग देने के बजाय वे धैर्य और संयम से काम लेते हुए उन्हें सुलझाने का प्रयास करें।