पिछले करीब एक महीने से दिल्ली में प्रदूषण के चिंताजनक स्तर तक बढ़ने के मद्देनजर कई घोषणाएं सामने आर्इं। लेकिन समस्या बढ़ते प्रदूषण के असली कारकों की पहचान और उनकी रोकथाम संबंधी नीतियों पर अमल की है। अब प्रदूषण रोकने के मकसद से सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रवैया अख्तियार किया है और अगले साल इकतीस मार्च तक के लिए दो हजार सीसी से अधिक क्षमता वाली या डीजल से चलने वाली एसयूवी कारों के पंजीकरण पर रोक लगा दी है। इसके अलावा, 2005 से पहले के पंजीकृत ट्रकों पर भी दिल्ली में प्रवेश करने पर रोक और डीजल से चलने वाली टैक्सियों को सीएनजी से चलाने के आदेश के साथ-साथ व्यावसायिक वाहनों पर लगने वाले ग्रीन टैक्स को भी बढ़ा कर दोगुना कर दिया है। जाहिर है, प्रदूषण के गहराते संकट के मद्देनजर सरकारी उपायों के बेअसर होने के बाद पहले राष्ट्रीय हरित अधिकरण और अब सुप्रीम कोर्ट ने डीजल से चलने वाले वाहनों को इस समस्या का एक सबसे प्रमुख कारक माना है। लेकिन क्या डीजल से चलने वाले वाहन आज अचानक दिल्ली की समस्या बन गए हैं? काफी समय पहले दिल्ली में सार्वजनिक बसों और आॅटोरिक्शा को डीजल के बजाय सीएनजी से चलाना इसीलिए अनिवार्य किया गया था कि प्रदूषण पर काबू पाया जा सके। लेकिन उसके बाद डीजल से चलने वाली कारों की तादाद बढ़ती गई और इस पर गौर करना किसी को जरूरी नहीं लगा। आज जब इससे मुश्किल बढ़ने लगी है तो फिर सरकार सक्रिय दिख रही है। एक घोषणा सम और विषम नंबरों वाली कारों को अलग-अलग दिन चलाने की हुई है। लेकिन अभी से इसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल है कि क्या कुछ तात्कालिक कदम उठा कर दिल्ली में प्रदूषण की समस्या से पार पाया जा सकता है।
यह छिपा नहीं है कि प्रदूषण पिछले दो-तीन दशक से दिल्ली में बड़ी समस्या बनी हुई है। हर साल ठंड के मौसम में जब हवा में घुले प्रदूषक तत्त्वों की वजह से जन-जीवन पर गहरा असर पड़ने लगता है तब सरकारी हलचल शुरू हो जाती है। विडंबना यह है कि जब तक कोई समस्या बेलगाम नहीं हो जाती, तब तक समाज से लेकर सरकारों तक को इस पर गौर करना जरूरी नहीं लगता। दिल्ली में प्रदूषण और इससे पैदा मुश्किलों से निपटने के उपायों पर लगातार बातें होती रही हैं और विभिन्न संगठन अनेक सुझाव दे चुके हैं। लेकिन उन्हें लेकर कोई ठोस पहल अभी तक सामने नहीं आई है। हर बार पानी सिर से ऊपर चले जाने के बाद कोई तात्कालिक घोषणा होती है और फिर कुछ समय बाद सब पहले जैसा चलने लगता है। पिछले पांच सालों के दौरान दिल्ली में वाहनों की तादाद में सत्तानबे फीसद बढ़ोतरी हो गई। इनमें अकेले डीजल से चलने वाली गाड़ियों की तादाद तीस प्रतिशत बढ़ी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अगले कुछ महीनों तक डीजल से चलने वाली नई गाड़ियों का पंजीकरण नहीं होगा, लेकिन सवाल है कि पहले से जितने वाहन हैं और फिर मार्च के बाद नए पंजीकरण शुरू होने पर खरीदी जाने वाली गाड़ियां आबोहवा में क्या कोई असर नहीं डालेंगी?