पायलटों के साप्ताहिक आराम की अवधि बढ़ाने से विमानन कंपनी इंडिगो में उपजा उड़ान परिचालन का संकट इस फैसले को वापस लेने के बाद भी थमता नजर नहीं आया। शनिवार को कंपनी की साढ़े आठ सौ से अधिक उड़ानें रद्द कर दी गईं, जबकि शुक्रवार को देश भर के विभिन्न हवाईअड्डों से एक हजार से अधिक उड़ानें निरस्त कर दी गई थीं। इससे न केवल यात्रियों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में परेशानी हो रही है, बल्कि उन्हें दूसरी उड़ानों की यात्रा टिकट हासिल करने के लिए कई गुना अधिक दाम चुकता करने पड़ रहे हैं।
हालांकि, इस समस्या के निराकरण के लिए सरकार ने अब फिलहाल दूरी के आधार पर हवाई किराए की सीमा 7,500 रुपए से 18,000 रुपए तक सीमित कर दी है। मगर उड़ानों के परिचालन का संकट दूर करने के लिए पायलटों के साप्ताहिक आराम की अवधि बढ़ाने का जो फैसला वापस लिया गया है, क्या इस मसले की संवेदनशीलता को देखते हुए उस पर फिर से विचार किया जाएगा? यह सवाल भी महत्त्वपूर्ण है कि आखिर इंडिगो में ही यह संकट क्यों और कैसे पैदा हुआ।
दरअसल, पायलटों का संगठन लंबे समय से साप्ताहिक आराम की अवधि बढ़ाने की मांग कर रहा था। उनका कहना था कि लगातार काम के दबाव की वजह से उन्हें थकान समेत कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस पर नागर विमानन महानिदेशालय ने हाल में नई नियमावली जारी कर पायलटों के साप्ताहिक आराम की जरूरत के समय में बारह घंटे की बढ़ोतरी कर उसे अड़तालीस घंटे कर दिया था। इसके बाद इंडिगो की उड़ानों के रद्द होने का सिलसिला शुरू हो गया।
जरा-सी चूक किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है
कंपनी का तर्क था कि नए नियमों के लागू होने से ज्यादा पायलट अवकाश पर हैं, जिससे उड़ानों का परिचालन बाधित हुआ है। मगर, इस बात पर गौर करना जरूरी है कि नए नियम सभी विमानन कंपनियों पर लागू थे! दूसरा, इस बात पर भी गहराई से विचार करने की जरूरत है कि उड़ान के दौरान पायलटों की संवेदनशीलता और सक्रियता बेहद महत्त्वपूर्ण होती है, जरा-सी चूक किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है। ऐसे में उनके पूरी तरह स्वस्थ रहने के लिए उन्हें जरूरी आराम की सुविधा का पहलू भी अहम है।
एक और समस्या है जो उड़ानों के संकट के बीच अक्सर हवाई यात्रियों को परेशानी और चिंता में डाल देती है, वह है किराए में अचानक बढ़ोतरी। यह इसलिए है, क्योंकि विमानन कंपनियों पर किराए की सीमा को लेकर कोई स्पष्ट नियम लागू नहीं है। इसी कारण शनिवार को स्पाइसजेट की कोलकाता-मुंबई की एक तरफ की यात्रा के लिए ‘इकोनामी’ श्रेणी के हवाई टिकट की कीमत नब्बे हजार रुपए तक पहुंच गई, जबकि एअर इंडिया की मुंबई-भुवनेश्वर उड़ान के लिए यात्रियों को चौरासी हजार रुपए तक में टिकट खरीदना पड़ा।
कंपनियों की मनमानी पर अंकुश लगाना जरूरी
इन खबरों के बाद सरकार ने फिलहाल दूरी के आधार पर हवाई किराए की सीमा तय कर दी है। मगर यह व्यवस्था तब तक रहेगी, जब तक उड़ानों का संकट दूर नहीं हो जाता है। सवाल है कि क्या इसके बाद विमानन कंपनियों की ओर से मनमाना किराया वसूलने का सिलसिला जारी रहेगा। ऐसे में जरूरी है कि सरकार की ओर से स्थायी तौर पर हवाई किराए की सीमा तय करने की पहल की जाए, ताकि कंपनियों की मनमानी पर अंकुश लग सके और यात्रियों को बेवजह परेशानी एवं आर्थिक नुकसान न झेलना पड़े।
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