दिल्ली के एक नर्सिंग कालेज में दो छात्राओं के साथ जिस अवांछित व्यवहार की शिकायत सामने आई है, वह बेहद आपत्तिजनक है। इससे पता चलता है कि किसी संस्थान में जिम्मेदारी वाले पद पर होने के बावजूद कोई व्यक्ति कैसे अपनी मर्यादाओं को भूल जाता है और इस क्रम में वह किसी महिला के सम्मान को गहरी चोट पहुंचाता है। निश्चित रूप से यह न केवल स्त्री की गरिमा के विरुद्ध है, बल्कि ऐसे व्यक्ति के उस सामंती ढांचे को भी दर्शाता है, जो पद की अकड़ में किसी के खिलाफ बेलगाम बर्ताव कर बैठता है।

आठ हजार रुपये चोरी के शक में किया यह तमाशा

खबर के मुताबिक, नर्सिंग कालेज की छात्राएं अपने छात्रावास की वार्डन के साथ एक कार्यक्रम में गई थीं, जिसमें कथित रूप से वार्डन के थैले से आठ हजार रुपए की चोरी हो गई। इसके बाद वार्डन ने बिना किसी आधार के दो छात्राओं पर चोरी का आरोप लगा दिया। इससे ज्यादा आपत्तिजनक बर्ताव यह किया गया कि छात्राओं के कई बार इनकार करने के बावजूद वार्डन ने दोनों के कपड़े उतरवा कर तलाशी ली।

हालांकि दोनों के पास से कोई पैसा नहीं मिला। सवाल है कि पैसा चोरी होने के बाद अगर वार्डन को कोई शक था भी, तो उसे खुद कानून हाथ में लेने का क्या अधिकार था? फिर, जैसा बर्ताव छात्राओं के साथ किया गया, क्या वह किसी भी रूप में शक को दूर करने की कोशिश लगती है?

पद के नाहक अहं में आकर लड़कियों के कपड़े उतरवाए गए

सच यह है कि हड़बड़ी या फिर पद के नाहक अहं में आकर लड़कियों के कपड़े उतरवाए गए और इस तरह उन्हें अपमानित किया गया। यह अपने आप में न सिर्फ नाहक आपा खोकर की गई अमानवीय हरकत है, बल्कि यह कानूनन अपराध के दायरे में भी आता है। अगर चोरी हुई भी, तो इसकी शिकायत पुलिस के पास की जा सकती थी। मगर वार्डन ने जो बर्ताव किया, वह कानून को ताक पर रखना था।

इसलिए स्वाभाविक ही अब पीड़ित छात्राएं और उनके अभिभावकों की शिकायत के बाद इस मसले पर वार्डन के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई और अब उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी। हैरानी की बात है कि समाज के जिस तबके के बारे में शिक्षित होने और किसी संस्थान को सभ्य नियमावली से संचालित होने की उम्मीद की जाती है, अक्सर उसी की ओर से ऐसी हरकतें सामने आती हैं, जिसमें आज भी सामंती मूल्य बने हुए हैं और उसे कानून की परवाह नहीं है।

झारखंड में नकल के शक में कपड़े उतरवा कर ली गई थी तलाशी

दिल्ली की यह घटना इस तरह का कोई अकेला उदाहरण नहीं है। आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिसमें कहीं चोरी के आरोप में तो कभी परीक्षा में नकल रोकने के नाम पर कपड़े उतरवा कर लड़कियों की तलाशी ली जाती है। ऐसी हरकतें करने वाले लोगों या संस्थानों को क्या इस बात का अंदाजा भी होता है कि ऐसे व्यवहार की शिकार लड़कियों के मन-मस्तिष्क पर क्या असर पड़ता है? करीब सात महीने पहले झारखंड के जमशेदपुर से एक खबर आई थी, जिसमें नकल के शक में कपड़े उतरवा कर एक छात्रा की तलाशी लेने का आरोप था।

इससे बेहद आहत और अपमानित महसूस करने के बाद छात्रा ने घर जाकर खुद को आग ली लगी थी। यह समझना मुश्किल है कि ऐसा करके किसी गड़बड़ी को रोकने की कोशिश की जाती है या एक नई गड़बड़ी को अंजाम दिया जाता है! अगर किसी संस्थान या व्यक्ति को चोरी या नकल का शक है तो क्या इससे निपटने का यही तरीका बचा है कि किसी लड़की को इस तरह अपमानित किया जाए?