दिल्ली के एक इलाके में जिस तरह की घटना सामने आई है, किसी आधुनिक समाज में उसका ब्योरा एक काल्पनिक डरावनी कहानी की तरह लगता है। लेकिन देश में सबसे सुरक्षित क्षेत्र में शुमार राजधानी में जो हुआ, वह बेहद त्रासद हकीकत है और इस पर कोई भी संवेदनशील इंसान अफसोस, दुख और गुस्से से भर जा सकता है।

वहां कुछ लोगों ने एक युवती का अपहरण किया, उससे सामूहिक बलात्कार किया गया, फिर उसके बाल काटे गए, चेहरे पर कालिख पोत कर और गले में जूतों की माला डाल कर सड़कों पर घुमाया गया।

सबसे अफसोस की बात यह थी कि इस समूची घटना में पुरुषों के साथ महिलाएं भी शामिल थीं, जिनकी पहली जिम्मेदारी थी कि वे कम से कम महिला होने के नाते पीड़िता की मदद करने की कोशिश करतीं। लेकिन सुर्खियों में आए एक वीडियो के मुताबिक भीड़ में शामिल महिलाएं उस युवती से बर्बर बर्ताव में हिस्सा ले रही थीं, हंस रही थीं।

अफसोसनाक यह भी है कि जहां यह सब हो रहा था, वहां से कुछ ही दूरी पर पुलिस बूथ है। इसके बावजूद करीब दो घंटे तक यह शर्मनाक और अराजक वाकया घटित होता रहा।

ज्यादातर आपराधिक घटनाओं के मामले में ‘देर से पहुंचने’ को एक रिवायत की तरह पूरा करने वाली पुलिस वहां भी देर से पहुंची, तब उस युवती को छुड़ाया गया। अब नौ महिलाओं सहित ग्यारह लोगों को गिरफ्तार किया गया है और कुछ अन्य आरोपी फरार हैं। सवाल है कि ऐसी घटनाओं को आमतौर पर किसी दूरदराज और पिछड़े इलाके में अपराध की एक सामंती प्रवृत्ति के तौर पर मानने के संदर्भ में कैसे देखा जाएगा!

देश की राजधानी होने के नाते यह उम्मीद की जाती है कि यहां पुलिस और प्रशासन के स्तर पर ऐसी चौकसी होगी कि अचानक होने वाली किसी आपराधिक वारदात से निपटने के लिए एक सुव्यवस्थित तंत्र होगा।

समाज के तौर पर भी यहां के लोग आधुनिक और सभ्य मूल्यों के ज्यादा संपर्क में आए होंगे और उसी मुताबिक जीने की कोशिश करते होंगे। लेकिन मामले के समूचे ब्योरे पर नजर डालें तो बेहद अफसोस के साथ स्वीकार करना पड़ेगा कि यह घटना एक समाज के स्तर पर पूरी तरह नाकाम होने का सबूत है, पुलिस और प्रशासनिक तंत्र के रवैए और कार्यशैली पर एक गहरा सवालिया निशान लगाती है।

इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि एक अकेली युवती के साथ काफी देर तक इस तरह की बर्बरता होती रही और वहां मौजूद महिलाओं सहित सारे लोग या तो उसमें शामिल रहे या फिर मूकदर्शक रहे। सवाल है कि कोई भी व्यक्ति अपने से संबंधित किसी महिला के साथ इस तरह के बर्ताव को लेकर क्या सोचेगा?

व्यापक संदर्भों में देखें तो यह सवाल व्यक्तिगत हो सकता है, लेकिन सार्वजनिक तौर पर ऐसा व्यवहार करने वाला व्यक्ति ही ऐसी घटनाओं के पीछे छिपी मानसिकता और विचार का वाहक होता है।

दूसरे, जो सरकार हर कुछ दिन बाद जनता को यह भरोसा देती रहती है कि वह महिलाओं के सुरक्षित जीवन के लिए हर उपाय करेगी, आपराधिक घटनाओं से उन्हें बचाने के लिए भारी तादाद में सीसीटीवी लगाएगी या अपराधियों के खिलाफ कड़े कदम उठाएगी, उन्हें सामाजिक विकास जैसे कार्यक्रम पर शायद सोचना भी जरूरी नहीं लगता। जबकि महिलाओं के खिलाफ तमाम अपराधों के पीछे आमतौर पर कुंठित पुरुष मानसिकता काम करती है और इस प्रवृत्ति से बाहर लाने के लिए विशेष पहलकदमी की जरूरत है।

खासतौर पर जब एक महिला के खिलाफ आपराधिक बर्ताव करने वाली भीड़ में महिलाएं ही प्रमुख रूप से शामिल हों, तो यह सभी के लिए विचार करने का मामला है कि किसी समाज के सभ्य होने की कसौटी पर वे कहां हैं!