अनियमितताओं के अजीब-अजीब किस्से उजागर हो रहे हैं। अभी बैंक घोटालों को लेकर हाहाकार थमा भी न था कि नेशनल स्टाक एक्सचेंज यानी एनएसई को किसी रहस्यमय बाबा के इशारों पर चलाने का मामला उभर आया। विचित्र है कि कैसे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा अर्थ बाजार सालों एक ऐसे व्यक्ति के इशारों पर चलता रहा, जिसकी शकल-सूरत आज तक किसी ने नहीं देखी। अब मामले ने तूल पकड़ा है तो आयकर विभाग को याद आया कि इस संस्था से जुड़े दो बड़े अधिकारियों के आय संबंधी ब्योरे खंगाले जाने चाहिए।
एनएसई की प्रबंध निदेशक एवं कार्यकारी अधिकारी रहीं चित्रा रामकृष्ण और समूह परिचालन अधिकारी आनंद रामकृष्ण के घरों पर गुरुवार को उसने छापे मारे। हालांकि चित्रा के खिलाफ अनियमितता की शिकायतें सात साल पहले ही दर्ज कराई गई थीं। पर बाजार नियामक संस्था सेबी ने चित्रा और आनंद के खिलाफ छह साल तक चुप्पी क्यों साधे रखी, यह भी कम रहस्यमय नहीं है। अब सेबी ने चित्रा के खिलाफ एक सौ नौ पन्ने की रिपोर्ट जारी की है।
मामला यों है कि एनएसई की कार्यकारी अधिकारी रहते हुए चित्रा ने कुछ ऐसे व्यक्तियों को उस संस्था में भारीभरकम वेतन, भत्ते और अन्य आलीशान सुविधाओं के साथ नियुक्त किया, जो उन पदों के योग्य नहीं माने जा सकते। उन नियुक्तियों में नियम-कायदों की खुल कर अनदेखी की गई। अब पूछताछ में चित्रा ने स्वीकार किया है कि वे हिमालय में रहने वाले एक ऐसे योगी के संपर्क में थीं, जो उन्हें एनएसई को चलाने संबंधी सुझाव दिया करता था। एनएसई वह सरकारी संस्था है, जो शेयर बाजार में कंपनियों के शेयरों की कीमत निर्धारित करता है। उस पर तीन सौ लाख करोड़ रुपए के आर्थिक कारोबार का दारोमदार है।
हैरानी की बात है कि ऐसे संस्थान का मुखिया इतना भोला हो सकता है कि वह एक अज्ञात बाबा के कहने पर सारे निर्णय कर रहा था। यहां तक कि चित्रा एनएसई की बैठकों में लिए गए निर्णयों आदि के गोपनीय ब्योरे भी उस बाबा से साझा करती रहीं। चित्रा ने स्वीकार किया है कि वे उस बाबा से कभी मिलीं नहीं, उससे मेल पर संपर्क में रहती थीं।
आश्चर्य कि इतनी बड़ी संस्था की मुखिया को इतने लंबे समय में कभी शक भी न हुआ कि आखिर वह बाबा है कौन, जो उनके और उनके संस्थान की हर गतिविधि के बारे में जानकारी रखता है।
हैरानी इस बात की भी है कि सेबी ने भी चित्रा के खिलाफ की गई शिकायतों पर इतने समय तक चुप्पी साधे रखी। वह रहस्यमय बाबा कौन है, इसका पता लगाना कौन-सा कठिन काम है। जब सेबी ने उस बाबा और चित्रा के बारे में हुई मेल पर बातचीत के ब्योरे इकट्ठा कर सकती है, तो उसे उन मेलों के जरिए उन कंप्यूटरों की पहचान यानी आइपी एड्रेस निकालना कितनी देर का काम था, जो आजकल कोई भी बहुत आसानी से कर लेता है।
मगर सेबी ने अब तक उस बाबा के बारे में जानकारी जुटाना क्यों जरूरी नहीं समझा, यह भी बड़ा रहस्य है। यह तब है जब देश एक बार शेयर बाजार महाघोटाले का शिकार हो चुका है। इस तरह की ढिलाई, चुप्पी, रहस्यमय ढंग से हो रही कार्रवाई और दिखावे के छापों आदि से यह रहस्य और गहरा होता गया है कि क्या वास्तव में इस प्रकरण में कोई बाबा है या कोई बड़ा खिलाड़ी यह खेल कर रहा था और वह कितना बड़ा खेल कर गया।