रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने इस बार भी नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया। पिछली बार की तरह इस बार एमपीसी की प्राथमिकता महंगाई को लेकर सतर्क रहने की ही ज्यादा दिखी। हालांकि एमपीसी ने इस बार भी कहा कि उदारता भरा रुख अब ज्यादा लंबा नहीं चलने वाला। इसलिए आने वाले वक्त में रिजर्व बैंक से बेहद उदार रुख की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। मतलब साफ है कि नीतिगत दरों में बदलाव पर विचार हो भी सकता है।

लगता है कि एमपीसी आने वाले दिनों के जोखिमों को समझ रही है। इसलिए उसने मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ा कर 5.7 फीसद कर दिया, जबकि इस साल फरवरी में यह साढ़े चार फीसद रखा गया था। इतना ही नहीं, हालात को देखते हुए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान भी घटा कर 7.2 फीसद कर दिया है, जो पहले 7.8 फीसद था। महंगाई और जीडीपी के अनुमानों में बदलाव इस बात का संकेत है कि अर्थव्यवस्था की चुनौतियां और बढ़ सकती हैं।

जहां तक महंगाई की बात है, केंद्रीय बैंक यह पहले से ही कह रहा है कि इस साल यानी 2022-23 में भी महंगाई से मुक्ति नहीं मिलने वाली। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए ही मुद्रास्फीति का अनुमान 6.3 फीसद रखा है। बाकी अगली तीन तिमाहियों में भी यह पांच फीसद से ऊपर ही रहने का अनुमान है।

ऐसा इसलिए भी है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से कच्चे तेल के दामों में उतार-चढ़ाव बड़ी समस्या बन गया है। इसका असर साफ दिख भी रहा है। पेट्रोल-डीजल से लेकर सीएनजी और पीएनजी तक के दाम जिस रफ्तार से बढ़ रहे हैं, उससे महंगाई भी बेलगाम होती जा रही है।

खाने-पीने के सामान और खाद्य तेलों से लेकर दूसरी जिंसों के दाम भी आसमान छू रहे हैं। यह तब है जब लोगों की आमदनी नहीं बढ़ रही और बेरोजगारी के आंकड़े डराने वाले हैं। औद्योगिक उत्पादन के आंकड़ों में भी कोई दम नहीं दिख रहा। निजी निवेश और खपत में भी कहीं कोई तेजी नहीं है। एमपीसी ने माना भी है कि आर्थिक गतिविधियां शुरू तो हुई हैं, पर अभी कोविड से पहले वाले स्तर तक आने में समय लगेगा। ऐसे में नीतिगत दरों में किसी भी तरह का बदलाव फिलहाल जोखिम भरा ही साबित होता।

अर्थव्यवस्था की चिंता के साथ ही आरबीआइ बैंकिंग और वित्तीय क्षेत्र को मजबूत बनाने की दिशा में भी सक्रिय दिख रहा है। उपभोक्ताओं के हितों की फिक्र भी उसे है। इसलिए ग्राहक सेवाओं में सुधार के लिए समिति बनाने की बात की है। अब ज्यादातर बैंक डिजिटल सेवाएं दे रहे हैं। इस लिहाज से उपभोक्ता संरक्षण का पक्ष महत्त्वपूर्ण हो जाता है। बैंक ग्राहकों को एक और बड़ी सहूलियत देने की बात है और वह यह कि सभी बैंकों के ग्राहकों को एक ही नेटवर्क पर बिना कार्ड एटीएम से पैसा निकालने की सुविधा देना। हालांकि अभी कुछ ही बैंक ऐसी सुविधा दे रहे हैं।

इससे एटीएम कार्ड धोखाधड़ी के मामलों पर भी अंकुश लगेगा। मौद्रिक नीति समिति के फैसले बता रहे हैं कि अर्थजगत के लिए आने वाला समय कठिनाइयों भरा है। सरकार के लिए भी और आमजन के लिए भी। आर्थिक कुप्रबंधन और महंगाई ने श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों की क्या हालत कर दी, यह हम देख ही रहे हैं। हालांकि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत स्थिति में बताया जा रहा है। पर महंगाई से निजात का कोई तोड़ किसी को नहीं सूझ रहा। ऐसे में रिजर्व बैंक के लिए मौद्रिक प्रबंधन बड़ी चुनौती है।