समूचे दक्षिण एशिया में शांति का माहौल बनाए रखने में भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों की क्या अहमियत है, यह किसी से छिपा नहीं है। समय-समय पर ऐसी कूटनीतिक कवायदें होती रही हैं, जिनका मकसद दोनों देशों के संबंधों में सहजता स्थापित करना रहा है। लेकिन जब भी ऐसी कोशिशें परवान चढ़ने लगती हैं, पाकिस्तान की ओर से कोई ऐसी हरकत सामने आ जाती है कि फिर भारत को अपने रुख पर विचार करना पड़ता है। जबकि भारत और पाकिस्तान का हित इसी में है कि शांति की स्थिति में निरंतरता कायम हो, ताकि दोनों देश गैरजरूरी तनाव में प्रतिद्वंद्विता के बजाय क्षेत्रीय विकास में अपनी भूमिका निभा सकें। इस लिहाज से देखें तो भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की अमेरिका की ताजा यात्रा को इसलिए भी खास माना जा सकता है कि वहां अपने समकक्ष जिम मैटिस से मुलाकात में उन्हें एक बड़ी राजनयिक कामयाबी मिली। आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अमेरिका ने पाकिस्तान को यह सख्त संदेश दिया कि वह भारत, अफगानिस्तान और संयुक्त राष्ट्र सहित दक्षिण एशिया में शांति कायम करने और दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे सभी पक्षों का समर्थन करे।

दरअसल, अफगानिस्तान सहित पाकिस्तान में भी तालिबान अपनी जिस तरह की भूमिका में है, उसमें लगातार चल रही युद्ध की स्थिति को खत्म किए बिना इस समूचे इलाके में शांति कायम करना मुश्किल है। दूसरी ओर, यह भी एक सच्चाई है कि आतंकवाद और युद्ध के किसी भी रूप में अगर तालिबान की संलिप्तता है तो उसके समाधान में पाकिस्तान की भूमिका अहम होगी। इसलिए अमेरिका के रक्षा मंत्री ने अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में मदद के लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को लिखे पत्र का हवाला देते हुए कहा कि इस मुद्दे पर पाकिस्तान का पूरा समर्थन ही हमारे बीच की साझेदारी का आधार होगा। जाहिर है, इस समूचे क्षेत्र में शांति कायम होना और उसमें स्थिरता चूंकि बहुत हद तक तालिबान के रुख पर भी निर्भर है, इसलिए भारत के साथ-साथ अमेरिका भी इस मामले में पाकिस्तान की भूमिका को अहम मान रहा है। लेकिन मुश्किल यह है कि जब कोई अंतरराष्ट्रीय दबाव सामने आता है, पाकिस्तान की ओर से इस मसले पर ठोस पहल करने का वादा किया जाता है। मगर जमीनी स्तर पर शायद ही कभी कुछ ठोस दिखता है।

यों हाल के दिनों में पाकिस्तान ने भारत के साथ संबंधों में सुधार के प्रति कुछ उत्सुकता दिखाई है। खासतौर पर करतारपुर साहिब गलियारे की शुरुआत के समय कई सकारात्मक संकेत सामने आए। लेकिन उसके बाद पाकिस्तान की ओर से कुछ नेताओं के जैसे चिढ़ाने वाले बयान आए, वे बनती बात को बिगाड़ने को कोशिश से कम नहीं थे। इसके बावजूद भारत ने अपनी ओर से संबंधों में सुधार की दिशा में कोई कमी नहीं की है। अब अमेरिका के सख्त संदेश के बाद यह देखने की बात होगी कि पाकिस्तान अपने रवैये में क्या बदलाव लाता है। खासतौर पर पाकिस्तान के ठिकानों से भारत में आतंकी गतिविधियां संचालित करने वाले लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों पर रोक लगाने को लेकर जब तक ठोस कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक शांति की सभी कोशिशें आधी-अधूरी साबित होंगी। यानी कहा जा सकता है कि तालिबान और कई अन्य आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई से लेकर बातचीत तक के जरिए शांति की राह निकालने में पाकिस्तान को अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभानी होगी। लेकिन यह इस बात पर निर्भर है कि पाकिस्तान इस मसले पर कितनी राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन कर पाता है।