पाकिस्तान के कराची शहर में शुक्रवार को चीनी वाणिज्य दूतावास पर जो आतंकी हमला हुआ, उससे साफ है कि पाकिस्तान में अब कोई सुरक्षित नहीं है। चीन जैसा उसका सबसे खास महाबली दोस्त भी। पाकिस्तान के अंदरूनी हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि रोजाना कहीं न कहीं से आतंकी हमलों की खबरें आ रही हैं। आतंकी गुट, कबाइली गुट, विद्रोही समूह सब सक्रिय हैं। इधर चीनी दूतावास के दफ्तर पर हमला हुआ तो दूसरी ओर खैबर पख्तूनख्वा में एक धमाके में बत्तीस लोगों की मौत हो गई। ये हालात बता रहे हैं कि मुल्क पर निर्वाचित सत्ता की कोई पकड़ नहीं रह गई है और आतंकी सरकार पर भारी पड़ रहे हैं। कराची में चीनी दूतावास पर हमले की जिम्मेदारी बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने ली है। बलूचिस्तान लंबे समय से पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बना हुआ है। अलग बलूच राष्ट्र की मांग को लेकर दशकों से आंदोलन चल रहा है, जिसे समय-समय पर सैन्य ताकत के जरिए कुचलने की कोशिश भी हुई है।
कहा जा रहा है कि चीनी प्रतिष्ठान को निशाना बनाने के पीछे बड़ा कारण चीन-पाक आर्थिक गलियारा है। इसे पाकिस्तानी लोग खासकर बलूच चीन की विस्तारवादी नीति के रूप में देख और इसका विरोध कर रहे हैं। बीएलए ने खुल कर कहा है कि वह बलूचिस्तान की जमीन पर चीन के कदम बर्दाश्त नहीं करेगी। वह इस खतरे को भांप चुकी है कि अगर यह गलियारा बन गया तो चीनी गतिविधियां तेजी से बढ़ेंगी और ऐसा वक्त कभी आ सकता है जब बलूचों को कुचलने के लिए पाकिस्तान चीन की मदद लेने से भी नहीं हिचकेगा। चीन-पाक आर्थिक गलियारा पाकिस्तान और चीन दोनों की काफी बड़ी और महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, जिसके जरिए पाकिस्तान चीन को अरब सागर तक आसान पहुंच मुहैया कराएगा और बदले में चीन पाकिस्तान को आर्थिक-सैन्य मदद देगा। चीन पाकिस्तान के लिए अपरिहार्य इसलिए भी है कि पिछले कुछ सालों में अमेरिका ने आतंकवाद पर लगाम न लगाने को लेकर पाकिस्तान की आर्थिक-सैन्य मदद रोक दी है। इससे पाकिस्तान अमेरिका से खिसियाया हुआ है और चीन की गोद में जा बैठा है।
कराची में अपने दूतावास पर हमले से चीन सकते में हैं। चीन-पाक आर्थिक गलियारा परियोजना में चीन के सैकड़ों अधिकारी और कर्मचारी पाकिस्तान में तैनात हैं। ऐसे में सबसे बड़ा खतरा यह खड़ा हो गया है कि इस परियोजना का विरोध करने वाले अब कहीं उन पर हमले न करें। इसलिए चीन ने पाकिस्तान से अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा है। पाकिस्तान के सामने अब बड़ी चुनौती अपने यहां फैले आतंकवाद से निपटने की है। चीन को भी इस घटना से सबक लेना चाहिए कि अगर वह किसी भी रूप में आतंकवाद का समर्थन करता है, तो यह उसके लिए भी अच्छा नहीं होगा। चीन यह भी भलीभांति जानता है कि भारत पिछले तीन दशक से आतंकवाद का जो दंश झेल रहा है, उसके पीछे हाथ पाकिस्तान का ही है और दूसरी ओर वह भारत से दोस्ती की बात कहता है। चीन के लिए भारत बड़ा बाजार है, इस लिहाज से भारत-चीन रिश्ते अहमियत रखते हैं। पर जब जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर पर संयुक्त राष्ट्र की पाबंदी लगाने का मौका आया, तो चीन उसके पक्ष में खड़ा हो गया। जाहिर है, चीन और पाकिस्तान आतंकियों को पालने की जिस नीति पर चल रहे हैं, कराची का हमला उसी की देन है।