सिंगापुर में आयोजित आसियान देशों का इस बार का शिखर सम्मेलन भारत के लिए कई तरह से उत्साहजनक है। प्रधानमंत्री ने फिनटेक फेस्टिवल में बैंकिंग प्रौद्योगिकी प्लेटफार्म एपिक्स का उद्घाटन किया। एपिक्स यानी अप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस एक्सचेंज एक ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जिसके जरिए हमारे देश की कंपनियां दुनिया भर के वित्तीय संस्थानों से जुड़ सकेंगी। जाहिर है, इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। पिछले कुछ सालों में जिस तरह इंटरनेट का विस्तार हुआ है और कारोबार के क्षेत्र में इससे काफी मदद मिलने लगी है, एपेक्स उसे और गति देगा। पिछले एक साल में आसियान देशों के साथ भारत के कारोबार में दस फीसद से अधिक बढ़ोतरी हुई है। भारत के कुल निर्यात का ग्यारह फीसद से अधिक हिस्सा सिर्फ आसियान देशों के साथ हुआ। इस तरह सम्मेलन से कारोबार के क्षेत्र में और बढ़ोतरी की उम्मीद बनी है। आसियान सम्मेलन का सबसे बड़ा मकसद आपस में कारोबार और सुरक्षा संबंधी मसलों पर एकजुट होकर काम करना है। आसियान देशों में भारत एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, इसलिए भी इसे खास तवज्जो दी जाती है। इस साल फिनटेक फेस्टिवल में भारत के प्रधानमंत्री को संबोधित करने का मौका देकर एक तरह से भारत की आर्थिक ताकत को रेखांकित किया गया।
इस सम्मेलन की दूसरी बड़ी उपलब्धि प्रधानमंत्री की अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस से मुलाकात और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला रखने तथा सुरक्षा संबंधी मसलों पर बातचीत रही। जून में प्रधानमंत्री और अमेरिकी रक्षामंत्री सिंगापुर में ही मिले थे और उन्होंने बंद कमरे में क्षेत्र में प्रतिरक्षा संबंधी मसलों पर बातचीत की थी। उसी बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए अमरिकी उपराष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री से बातचीत की। दरअसल, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन अपना दबदबा बढ़ाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए वह अपने पड़ोसियों पर दबाव भी बना रहा है। इसलिए भारत और अमेरिका की चिंता स्वाभाविक है। वे दोनों इस पक्ष में हैं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला और समृद्ध बनाया जाना चाहिए। पिछले दिनों जब प्रधानमंत्री जापान की यात्रा पर गए थे, तब भी दोनों देशों के बीच इसी क्षेत्र को सुरक्षित और समृद्ध बनाने की जरूरत पर बल दिया गया। जापान इस मामले में पूरी तरह सहयोग को तैयार है। अगर अमेरिका भी इसमें हाथ मिला लेता है, तो चीन की मुश्किलें निस्संदेह बढ़ेंगी। इस लिहाज से अमेरिकी उपराष्ट्रपति से प्रधानमंत्री की बातचीत हिंद-प्रशांत क्षेत्र को खुला और समृद्ध बनाने की दिशा में नई उम्मीद जगाती है।
आसियान देशों का आर्थिक रूप से मजबूत होना चीन के लिए बड़ी चुनौती है। अभी तक विश्व बाजार के बड़े हिस्से पर चीन का कब्जा है। आसियान देशों का परस्पर कारोबारी संबंध प्रगाढ़ होने और तकनीक के जरिए एक-दूसरे देश की कंपनियों और वित्तीय संस्थाओं के जुड़ने से बहुत सारे मामलों में चीन पर से निर्भरता खत्म होगी। फिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त रखने से चीन का सैन्य दबदबा समाप्त होगा। वह पाकिस्तान को इसीलिए शह देता रहता है, आतंकवाद जैसे मसलों पर पाकिस्तान पर कस रहे शिकंजे के खिलाफ खड़ा होता रहता है कि उसके जरिए वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभाव जमा सकेगा। पर अगर अमेरिका, जापान आदि देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त रखने के पक्ष में खड़े होते हैं, तो चीन के लिए पाकिस्तान को लंबे समय तक शह देते रहना संभव नहीं होगा। इस लिहाज से सिंगापुर आसियान शिखर सम्मेलन व्यापार और प्रतिरक्षा मामलों में भारत के लिए उल्लेखनीय तो रहा ही, इसके जरिए विश्व बिरादरी में नए समीकरण भी बने।