सरकारी अधिकारियों को अनुशासित करने और अदालती कार्यवाही को सुगम बनाने के इरादे से केंद्र ने फैसला किया है कि अगर किसी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज हो गया है या ऐसे किसी मामले में अदालत ने उसके खिलाफ संज्ञान लिया है, तो वह पासपोर्ट हासिल नहीं कर सकेगा। इस संबंध में कार्मिक मंत्रालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग और विदेश विभाग ने परस्पर समीक्षा करने के बाद आदेश जारी कर दिया है। केंद्र सरकार भ्रष्टाचार को लेकर शुरू से काफी सख्त है। इसके लिए अधिकारियों पर नकेल कसने के मकसद से कई कड़े कानून बनाए गए हैं और सतर्कता अयोग तथा संबंधित महकमों को कड़ी नजर रखने का निर्देश है। इसके बावजूद कई बार देखा जाता है कि कोई कानूनी पेच निकाल कर या फिर अदालती कार्यवाही से बचने के लिए कई अधिकारी विदेश भाग जाते हैं। इस तरह मुकदमों की सुनवाई के समय हाजिर नहीं होते। स्वाभाविक ही इससे संबंधित मामलों की सुनवाई और फिर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई में अड़चन आती है। जबकि कई संवेदनशील मामलों में त्वरित कार्यवाही की जरूरत होती है। अब सरकार के ताजा फैसले से वे ऐसा नहीं कर पाएंगे।
भ्रष्टाचार पर नकेल कसने के लिए सरकारी बाबुओं को जवाबदेह बनाना बड़ी चुनौती है। छिपी बात नहीं है कि अनेक सरकारी अधिकारियों के अनियमितताओं में लिप्त होने की वजह से विकास परियोजनाएं बाधित होती हैं, निवेश पर बुरा असर पड़ता है, आम नागरिकों के मामूली काम भी बाधित होते हैं। हालांकि वर्तमान सरकार ने अनेक कामों में अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने या अधिकारियों की जांच, मंजूरी आदि को आॅनलाइन कर दिया है। इस तरह लोगों को विभिन्न खिड़कियों पर जाकर नाहक अपना समय गंवाने और बाबुओं की रिश्वतखोरी से काफी राहत मिली है। सरकारी योजनाओं में भुगतान आदि को भी ऑनलाइन कर दिए जाने से पारदर्शिता आई है। पैसे लेकर काम करने वालों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया भी काफी आसान कर दी गई है, ऐसी शिकायतों पर सुनवाई भी तेजी से होने लगी है। फिर भी जिन बाबुओं को रिश्वतखोरी की लत पड़ गई है, वे इसके लिए कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेते हैं। लिहाजा, अब पासपोर्ट जब्त होने या विदेश जाने की इजाजत न मिल पाने से शायद ऐसे लोगों के मन में कुछ भय पैदा हो।
हालांकि यह भी छिपी बात नहीं है कि नौकरशाही पर सत्तातंत्र के पक्ष में काम करने का दबाव रहता है। कई सरकारी अफसर सत्तापक्ष से निकटता बना कर अपने लिए सुरक्षा कवच तैयार कर लेते हैं। बाबुओं की तैनाती, तबादले आदि में इसका प्रभाव खूब देखा जाता है। सत्तापक्ष प्राय: अपने चहेते अधिकारियों को ही महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपता है। इस तरह भी उनमें भ्रष्ट आचरण की संभावना रहती है। इसलिए प्रशासनिक सुधार की दिशा में कठोर कदम उठाने की जरूरत बार-बार रेखांकित की जाती रही है। मगर तमाम सुझावों के बावजूद इस पर कोई पहल नहीं हो पाई है। इसलिए केंद्र सरकार अगर जिम्मेदार अधिकारियों के मामले में कुछ सख्ती बरत कर उन्हें जवाबदेह बनाने का प्रयास कर भी ले, तो राज्य सरकारों से ऐसे कदम की अपेक्षा संदेह के घेरे में बनी रहेगी। राज्यों के बड़े पदों पर केंद्रीय सेवाओं के ही अधिकारी तैनात होते हैं, पर कई बार देखा गया है कि जब उन पर भ्रष्टाचार से संबंधित मामले चलाने की कोशिश की जाती है, तो संबंधित राज्य सरकारें उनके सामने कवच बन कर खड़ी हो जाती हैं। पासपोर्ट जब्त होने से उन पर कितना असर होगा, देखने की बात है।