दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार की गिरफ्तारी असामान्य भले लगे, पर यह हैरानी का विषय नहीं है। सीबीआइ उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के पांच मामलों में जांच कर रही है, जो 2006 से 2014 के बीच के हैं। फिलहाल उन्हें जिस मामले में गिरफ्तार किया गया है उसकी शुरुआत 2006 में हुई थी। दिल्ली डॉयलॉग कमीशन के एक पूर्व सदस्य ने दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच (एसीबी) में मामला दर्ज कराया था। बीते साल जुलाई में मामला सीबीआइ के पास आया और उसने दिसंबर में राजेंद्र कुमार और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की थी।
कई दिनों की पूछताछ के बाद आखिरकार सीबीआइ ने राजेंद्र कुमार को गिरफ्तार कर लिया। इससे जाहिर है, अरविंद केजरीवाल की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचा है, जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के जरिए ही राजनीति में आए हैं। राजेंद्र कुमार दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के चहेते अधिकारी हैं; उनचास दिनों की ‘आप’ सरकार के दौरान भी वे प्रधान सचिव रहे थे। वे शीला दीक्षित सरकार में भी विभिन्न पदों पर रह चुके हैं। सवाल है कि आम आदमी पार्टी के उदय के पहले से जो आरोप राजेंद्र कुमार पर थे, क्या उनकी तनिक जानकारी केजरीवाल को नहीं थी? फिर, उन्होंने सावधानी क्यों नहीं बरती, प्रधान सचिव के लिए राजेंद्र कुमार का ही चुनाव क्यों किया? राजेंद्र कुमार पर आरोप है कि उन्होंने दिल्ली सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए अपने लोगों के नाम पर बनाई गई कंपनियों को फायदा पहुंचाया। कई ठेके निजी फर्म एंडेवर सिस्टम प्रा.लि. को सौंपे। अंतिम ठेका दिसंबर 2013 से फरवरी 2014 के बीच दिया गया। ठेके दिलाने के लिए कंपनी से रिश्वत ली गई।
यह पहला मौका नहीं है जब सीबीआई ने राजेंद्र कुमार पर शिकंजा कसा हो। पिछले साल दिसंबर में सीबीआइ ने उनके घर और दफ्तर पर छापा मारा था। इन छापों के लिए केजरीवाल ने सीधे वित्तमंत्री अरुण जेटली और प्रधानमंत्री मोदी को जिम्मेवार ठहराया था। सीबीआइ भले अपने कदम के राजनीतिक मंशा से प्रेरित होने के आरोप को खारिज कर रही थी, पर अदालत ने उसकी कार्रवाई को गलत ठहराते हुए केजरीवाल के कार्यालय से जब्त दस्तावेज लौटाने को कहा था। राजेंद्र कुमार की गिरफ्तारी के साथ आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर सीबीआइ के सियासी इस्तेमाल का आरोप जड़ा है। यानी एक तरफ केजरीवाल की प्रतिष्ठा तो दूसरी तरफ सीबीआइ और प्रकारांतर से केंद्र की साख भी दांव पर है। दिल्ली पुलिस आप के एक विधायक को संवाददाता सम्मेलन के बीच से पकड़ ले गई और एक मंत्री को एक ऐसे मामले में पूछताछ के लिए एसीबी ने तलब किया जिसकी जांच की पहल उन्होंने ही की थी।
इन घटनाओं का हवाला देकर भी आप केंद्र पर सियासी बदले का आरोप लगा रही है। क्या यह सिर्फ संयोग है कि ये सारी कार्रवाइयां गजब की तेजी से उस समय हुर्इं जब केजरीवाल पंजाब के दौरे पर थे। क्या इन कार्रवाइयों के पीछे पंजाब का आगामी विधानसभा चुनाव भी एक कारण हो सकता है, जहां आम आदमी पार्टी एक नई ताकत के रूप में उभरी है? जो हो, इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप की गुंजाइश खत्म की जा सकती है अगर सीबीआइ को स्वायत्त कर दिया जाए। विपक्ष में रहते हुए भाजपा इसकी वकालत करती थी। अब अपने ही उस रुख को वह क्यों भूल गई है!