हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में जिस समय लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या घटती जाने पर चिंता जताई जा रही है, इनसे सटे हिमाचल प्रदेश में लड़कियों के अनुपात में बेहतरी आई है, जो निस्संदेह एक प्रेरक मिसाल है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने ऐसी पचास पंचायतों को सम्मानित करने का फैसला किया है, जहां लड़कों की तुलना में लड़कियों का अनुपात बेहतर हुआ है। मसलन, लाहुल-स्पीति में एक हजार लड़कों पर छह वर्ष तक के आयु वर्ग की लड़कियों की संख्या एक हजार तैंतीस तक पहुंच गई है। इसके साथ ही हिमाचल सरकार ने यह भी संकल्प दोहराया है कि वह पूरे राज्य में प्रसव-पूर्व लिंग परीक्षण निषेध कानून पर कड़ाई से अमल सुनिश्चित करेगी। इसके लिए आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाएगा और अगर कोई व्यक्ति भ्रूण परीक्षण करने वालों के बारे में जानकारी देता है तो उसे दस हजार रुपए इनाम दिया जाएगा। ऐसे परिवारों को भी सम्मानित करने का फैसला किया गया है, जिन्होंने एक बच्ची या फिर दो बच्चियों के बाद परिवार नियोजन का फैसला किया। अगर ऐसे कदम दूसरी राज्य सरकारें भी उठाएं तो बालक-बालिका अनुपात सुधारने और समाज में बेटियों का सम्मान बढ़ाने में काफी हद तक मदद मिल सकती है। पिछले महीने प्रधानमंत्री ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत की, जिसके तहत देश के विभिन्न जिलों में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए अभियान चलेगा। यह छिपी बात नहीं है कि कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति पर रोक न लग पाने के पीछे रूढ़ सामाजिक सोच के अलावा प्रशासनिक लापरवाही बड़ा कारण है। प्रसव-पूर्व लिंग परीक्षण पर कानूनी रोक होने के बावजूद जगह-जगह ऐसे केंद्र मौजूद हैं, जो गर्भ परीक्षण के नाम पर चोरी-छिपे भ्रूण का लिंग परीक्षण करते हैं।
जिन राज्यों में लड़कों की तुलना में लड़कियों का अनुपात घट कर चिंताजनक स्तर तक पहुंच गया है, वहां का सामाजिक मानस उजागर है। उन इलाकों में अधिक कारगर तरीके से जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। साथ ही प्रशासन से कन्या भ्रूण हत्या कराने वालों की मदद करने वाले चिकित्सकों और चिकित्सा केंद्रों पर कड़ी नजर रखने की अपेक्षा की जाती है। मगर इन दोनों स्तरों पर अपेक्षित सक्रियता नहीं आ पाई है। हालांकि लड़कियों के कम अनुपात वाले राज्यों में भी कई पंचायतें ऐसी हैं, जिन्होंने जागरूकता अभियान चलाया और कन्या भ्रूण हत्या की प्रवृत्ति पर रोक लगाने में कामयाबी हासिल की। पर वहां की राज्य सरकारों ने उन्हें प्रोत्साहित करने के बारे में नहीं सोचा। हिमाचल प्रदेश में यों भी कई दूसरे राज्यों की तुलना में लड़के और लड़की के बीच भेदभाव कम है, महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं भी कम होती हैं, पर वहां लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या बढ़ने के पीछे पंचायतों की सराहनीय भूमिका रही है। उनकी नजीर जगह-जगह पेश की जानी चाहिए। हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की पंचायतें जातीय सम्मान के नाम पर लड़कियों के खिलाफ फैसले तो सुनाती रहती हैं, पर उन्हें हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों की पंचायतों के काम नजर नहीं आते तो इसलिए कि उनके बारे में उन्हें ठीक से बताने-समझाने का प्रयास नहीं किया जाता। अगर केंद्र की बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना को कामयाब बनाना है तो हिमाचल प्रदेश से प्रेरणा लेकर सभी राज्यों को दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी होगी।
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