पिछले कुछ महीनों के दौरान जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठनों के खिलाफ सेना और स्थानीय पुलिस ने जिस तरह का अभियान शुरू किया है, उसी का हासिल है कि अब इस दिशा में प्रत्यक्ष कामयाबी मिलती दिख रही है। रविवार को जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े तीन आतंकवादियों की गिरफ्तारी इसकी एक कड़ी भर है। इसके अलावा, हाल के आतंकी हमलों के दौरान सुरक्षा बलों ने पूरी क्षमता से सामना किया, आतंकियों को मार गिराया या फिर उन्हें गिरफ्तार किया। रविवार को ही आई एक खबर के मुताबिक जम्मू-कश्मीर पुलिस, सीआरपीएफ और सेना के संयुक्त अभियान में सिर्फ इस साल अब तक एक सौ नब्बे आतंकी मारे जा चुके हैं। जाहिर है, यह आतंक-प्रभावित क्षेत्र में काम कर रहे सैन्य-बलों के बढ़ते मनोबल का नतीजा है। निश्चित रूप से यह स्थिति तब आई है जब जमीनी स्तर पर समस्या की समझ के हिसाब से अपनी कार्रवाई को आगे बढ़ाने में उनके सामने से प्रशासनिक बाधाएं कम हुई होंगी। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर में खुफिया महकमे के साथ सुरक्षा बलों और स्थानीय पुलिस का तालमेल बना है, उसके चलते भी कामयाबी का बेहतर रास्ता तैयार हुआ है।
इस संदर्भ में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के बयान गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ मिली सफलता सुरक्षा बलों को करीब तीन दशक पुराने उग्रवाद का सफाया करने के लिए दी गई आजादी का परिणाम है। उन्होंने यह उम्मीद भी जताई है कि अब वहां उग्रवाद अपने अंतिम चरण में है। बीते कुछ महीनों के दौरान आतंकवादियों के खिलाफ मोर्चा लेने के मामले में सुरक्षा बलों को जो कामयाबी मिली है, उसे देखते हुए उनकी उम्मीद से इत्तिफाक रखा जा सकता है, लेकिन करीब तीन दशकों के दौरान जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की समस्या ने जिस तरह अपनी जड़ें गहरी की थीं, उसे फिलहाल कम करके आंकना शायद जल्दीबाजी होगी। यह किसी से छिपा तथ्य नहीं है कि वहां समस्या केवल आतंकी हमलों की नहीं है। स्थानीय समाज को एक ओर आतंकवादी संगठनों ने बुरी तरह अपनी चपेट में ले लिया है तो दूसरी ओर सुरक्षा बलों की छवि भी स्थानीय समाज में बहुत सकारात्मक नहीं रही है। यह स्थिति ज्यादा जटिल हालात पैदा करती है। कम उम्र के युवाओं को बरगला कर आतंकी गिरोहों में शामिल करने और फिर उनके जरिए लोगों को अपने लिए काम करने पर मजबूर करना जैश-ए-मोहम्मद या फिर लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों के एजेंडे पर है।
लेकिन अच्छी बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में सेना और पुलिस ने अब इस मोर्चे पर ध्यान देना शुरू किया है। पिछले कुछ समय से आतंकी संगठनों से सीधा मुकाबला करने के साथ-साथ सुरक्षा बलों ने सामाजिक संपर्क के स्तर पर भी शायद काम किया है। हाल के दिनों में पुलिस और सेना की तरफ से स्थानीय आतंकियों से अपील की गई कि वे अपने घर लौट आएं; अगर वे इसमें कोई मदद चाहते हैं तो उनकी मदद की जाएगी और वापस लौटे युवाओं को प्रताड़ित नहीं किया जाएगा। जाहिर है, इस आश्वासन का असर लोगों पर पड़ा। कुछ ही दिन पहले आई खबर के मुताबिक एक युवा फुटबॉलर लश्कर-ए-तैयबा में शामिल होने की घोषणा कर चुका था। लेकिन उसके परिवार ने उससे आतंकवाद छोड़ कर वापस लौटने की भावुक अपील की। युवक पर इसका असर पड़ा और उसके लौटने की खबर भी चर्चा में रही। यह घटना अपने आप में दर्शाती है कि कश्मीर में गहरे जड़ें जमा चुके आतंकवाद का सामना करने के लिए किन स्तरों पर ध्यान देने की जरूरत है। अगर स्थानीय समाज आतंकी संगठनों के खिलाफ खड़ा हो गया तो सरकार और सुरक्षा बलों के लिए इस समस्या से पार पाने का रास्ता आसान हो जाएगा।