ठीक एक साल बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल ने दूसरी बार शपथ ली। उन्हें और उनके मंत्रियों को शपथ लेते देखने और इस मौके पर उनका संबोधन सुनने शनिवार को आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक भारी तादाद में रामलीला मैदान पहुंचे। टीवी चैनलों के जरिए इस शपथ ग्रहण को न जाने कितने लोगों ने देखा-सुना होगा। शायद ही किसी और मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण को लेकर इतनी व्यापक दिलचस्पी दिखी हो। इसकी वजह जाहिर है।
जनलोकपाल आंदोलन के उत्स से निकली आम आदमी पार्टी देश की राजनीति में एक नई उम्मीद की तरह उभरी है। जब केजरीवाल और उनके साथियों ने इस पार्टी का गठन किया तो उनके निर्णय पर कई सवाल उठाए गए। आंदोलन को इस दिशा में ले जाने के औचित्य पर तो प्रश्न उठे ही, कामयाबी की संभावना को लेकर शक भी काफी जताए गए। लेकिन ‘आप’ ने इन सवालों और संदेहों का अभी तक माकूल जवाब दिया है। गठन के एक साल के भीतर, पहली बार में ही दिल्ली की सत्तर सदस्यीय विधानसभा में पार्टी के अट्ठाईस प्रत्याशी चुन कर आए। उसके साल भर बाद पार्टी के सड़सठ विधायक हैं। संगठन और संसाधन की अपार क्षमता से लैस भाजपा को केवल तीन सीटें मिलीं, कांग्रेस को एक भी नहीं। ऐसी अपूर्व सफलता आप ने जनपक्षधर और सादगी की अपनी पहचान खोकर नहीं, बल्कि उसे बनाए रखते हुए और उसके कारण ही पाई है।
बहरहाल, केजरीवाल सरकार की दूसरी पारी शुरू हो गई है। इस बार प्रचंड बहुमत से। उस पर उम्मीदों का काफी बोझ है। शपथ ग्रहण के बाद इस बार भी केजरीवाल ने दोहराया कि वे दिल्ली को भ्रष्टाचार-मुक्त बनाएंगे। मगर पिछली बार के उतावलेपन से सबक लेते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें पांच साल का कार्यकाल मिला है। इसी तरह, उन्होंने संकेत दिया कि वे दिल्ली की बेहतरी के लिए केंद्र के साथ मिल कर काम करेंगे। अलबत्ता दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग एक बार फिर दोहराई। इस तरह हड़बड़ी और केंद्र के साथ टकराव का जो आरोप उन पर चस्पां हुआ था उसे उन्होंने दूर करने की कोशिश की है। पार्टी ने सत्तर सूत्री घोषणापत्र जारी किया था। पर केजरीवाल ने शनिवार को रामलीला मैदान में कुछ खास मुद््दों का ही जिक्र किया। उन्होंने नए कॉलेज खोलने, सरकारी स्कूलों की दशा सुधारने, सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था की पहुंच और सुविधाएं बढ़ाने की बात पिछली बार भी कही थी; इस बार उनका संदेश व्यापारियों के लिए भी था कि वे छापों के भय से मुक्त होकर ईमानदारी से अपना काम करें, अब ‘रेडराज’ नहीं चलेगा।
केजरीवाल के संबोधन की दूसरी खास बात यह थी कि वे दिल्ली के लोगों को सांप्रदायिकता और नफरत की राजनीति से सचेत करना नहीं भूले। हाल में गिरिजाघरों पर हुए हमलों और त्रिलोकपुरी, बवाना में सांप्रदायिक तनाव भड़काने की घटनाओं का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि अब यह सब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पिछली बार की तरह इस बार भी उन्होंने वीआइपी कल्चर की आलोचना की और उससे मुक्ति का संकल्प दोहराया। संबोधन में उन्होंने सबसे पहले अपने कार्यकर्ताओं को ताकीद की कि वे जीत से कभी अहंकार में न आएं, वरना जनता हमें भी सजा देगी। आम आदमी पार्टी की दिल्ली की सत्ता में शानदार वापसी निश्चय ही देश की राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना है। इस वापसी ने राजनीति के प्रति लोगों के बुरी तरह लड़खड़ा चुके विश्वास को सहारा दिया है। अगर केजरीवाल सरकार ने अपने घोषणापत्र का संतोषजनक क्रियान्वयन किया और पार्टी ने दूसरी पार्टियों से अलग अपनी पहचान बनाए रखी तो राजनीति में बदलाव की उम्मीद और बढ़ सकती है।
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta