दिल्ली में आम आदमी पार्टी आरोपों से बाहर नहीं निकल पा रही। उसके विधायक आपराधिक मामलों में कानून के शिकंजे में फंसते जा रहे हैं। आप विधायक और दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष दिनेश मोहनिया की एक महिला के साथ कथित छेड़छाड़ के आरोप में हुई गिरफ्तारी इसका ताजा उदाहरण है। मोहनिया पर एक बुजुर्ग के साथ बदसलूकी का भी आरोप है। आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इस गिरफ्तारी पर रोष प्रकट करते हुए प्रधानमंत्री निवास के सामने प्रदर्शन किया और गिरफ्तारी दी। इसके पहले आप के एक विधायक को फर्जी दस्तावेज मामले में गिरफ्तार किया गया था।
सोमनाथ भारती को विदेशी महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि केंद्र सरकार दिल्ली में उसकी सरकार को काम नहीं करने देना चाहती, वह जानबूझ कर, गलत नीयत से उसके नेताओं को फंसाने की कोशिश कर रही है। जिस तरह दिल्ली पुलिस आप नेताओं पर लगे आरोपों के खिलाफ तत्काल सक्रियता दिखाती रही है, उससे इस आरोप को बल मिलता है। दिल्ली पुलिस ऐसे ही दूसरे मामलों में इतना सक्रिय नहीं दिखती। मगर इससे आम आदमी पार्टी के आरोपी नेता सही साबित नहीं हो जाते। पार्टी में अनुशासन के मामले में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
यह सही है कि जनप्रतिनिधियों को आम लोगों के बीच संपर्क बनाने और गलत गतिविधियों को रोकने के क्रम में कई बार ऐसा भी वातावरण उपस्थित हो जाता है, जिसमें उन्हें कुछ तल्ख व्यवहार करने पर मजबूर होना पड़ता है। मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि सार्वजनिक जीवन में जनप्रतिनिधि का आचरण मायने रखता है।
अनेक मौकों पर सत्ता पक्ष या विपक्ष के नेताओं पर राजनीतिक प्रतिशोध की मंशा से भी आरोप चस्पां कर दिए जाते हैं। ऐसे में प्रशासन को खासी सावधानी बरतने की जरूरत होती है। मामले की निष्पक्ष और गंभीरता से छानबीन की जरूरत होती है। मगर यह तभी संभव हो पाता है जब मामले को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखा जाए। मोहनिया पर लगे आरोप निसंदेह गंभीर हैं। उनके खिलाफ जो धाराएं लगी हैं, उनमें गिरफ्तारी बनती है। इसलिए आम आदमी पार्टी के नेताओं का इसके विरोध में उतरना खटकता है। यह सही है कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच आधिकारों का टकराव बना हुआ है।
उपराज्यपाल की लगातार दखलंदाजी से भी दोनों के संबंधों में कटुता बढ़ी है। जिस तरह दिल्ली सरकार के सचिव के कार्यालय और घर पर सीबीआइ के छापे पड़े, उससे भी केंद्र के रवैए पर अंगुलियां उठती रही हैं। पर मोहनिया का मामला चूंकि कानूनी है, उसे अदालत के सामने साफ होने का इंतजार करना चाहिए। आंदोलन के जरिए न तो मोहनिया को आरोपमुक्त कराया जा सकता है और न इससे आम आदमी पार्टी का पक्ष मजबूत होगा।
मगर इसके साथ ही दिल्ली पुलिस से भी अपेक्षा की जाती है कि वह मामले को बिना किसी आग्रह के हल करने का प्रयास करे। उस पर बार-बार आरोप लगते रहे हैं कि वह केंद्र के प्रभाव में काम कर रही है। उसका आचरण निष्पक्ष नहीं है। यह सही है कि कानून की नजर में सामान्य नागरिक और जनप्रतिनिधि सब बराबर हैं, पर इसे केवल आम आदमी पार्टी नेताओं के मामले में ध्यान रखने की जरूरत नहीं है। आम आदमी पार्टी को भी सबक लेना चाहिए कि वह अपने नेताओं को अनुशासित और मर्यादित आचरण के लिए प्रेरित करे।