भारत और अमेरिका के बीच हुए नए रक्षा समझौते को कई मायनों में महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। यह समझौता ऐसे समय में हुआ है, जब अमेरिका की ओर से भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए पचास फीसद शुल्क को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हो गया था। मगर, रिश्तों में जमी मतभेदों की यह बर्फ अब पिघलती नजर आ रही है।
पहले अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का यह बयान कि वे भारत के साथ व्यापार समझौता करने वाले हैं और फिर रक्षा सहयोग पर सहमति इस बात का संकेत है कि द्विपक्षीय संबंध फिर से पटरी पर लौट रहे हैं। यह कदम तमाम विरोधाभासों के बावजूद दोनों देशों के बीच बढ़ते रणनीतिक सामंजस्य को भी दर्शाता है।
अमेरिका ने भले ही दुनिया को दिखाने के लिए शुल्क नीति के जरिए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की हो, लेकिन वह बहुध्रुवीय होती वैश्विक व्यवस्था में भारत की भूमिका और प्रासंगिकता को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। प्रस्तावित व्यापार समझौता हो या रक्षा सहयोग, जाहिर है इनमें दोनों देशों के हित निहित हैं। मसला सिर्फ इस बात का है कि हर पहलू पर द्विपक्षीय नजरिए का परस्पर सम्मान किया जाना चाहिए, तभी संबंधों पर प्रगाढ़ता का रंग चढ़ता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिका के उनके समकक्ष पीट हेगसेथ ने शुक्रवार को कुआलालंपुर में व्यापक वार्ता के बाद ‘यूएस-इंडिया मेजर डिफेंस पार्टनरशिप फ्रेमवर्क’ समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह करार अगले दस वर्षों के लिए है और इससे भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के सभी आयामों को नीतिगत दिशा मिलने की उम्मीद है। इससे नई उच्च तकनीक तक भारत की पहुंच बढ़ेगी और दोनों देशों की सेना के बीच समन्वय की क्षमता में इजाफे के साथ रक्षा क्षेत्र में मिलकर काम करने के नए अवसर उपलब्ध होंगे।
निश्चित रूप से यह दोनों देशों के बीच बढ़ते रणनीतिक तालमेल का संकेत है और इस कदम से रक्षा साझेदारी के एक नए अध्याय का सूत्रपात होगा, जो मुक्त, खुला और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने की दिशा में भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का दबदबा रहा है और वहां शक्ति संतुलन को लेकर भारत-अमेरिका के साथ कई देश मिलकर काम कर रहे हैं।
इसमें दोराय नहीं कि भारत और अमेरिका हाल के वर्षों में अपने रक्षा संबंधों को बढ़ाने की दिशा में लगातार काम करते रहे हैं। इसी के तहत हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) और अमेरिकी रक्षा कंपनी जीई एयरोस्पेस के बीच भारत में एफ 414 जेट इंजन के संयुक्त उत्पादन पर भी बातचीत हुई है।
करीब एक दशक पूर्व अमेरिका ने भारत को ‘प्रमुख रक्षा साझेदार’ घोषित किया था, जिससे महत्त्वपूर्ण सैन्य उपकरणों और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान का मार्ग प्रशस्त हुआ था। नए रक्षा समझौते के बाद अमेरिका के रक्षा मंत्री हेगसेथ ने इस बात को दोहराया और कहा कि वे भारत के साथ इस क्षेत्र में मिलकर काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
यह दर्शाता है कि भारत की अहमियत को अमेरिका अच्छी तरह समझता है और दोनों देशों के रक्षा संबंधों पर अन्य विवादों का काई असर पड़ने वाला नहीं है। यह रक्षा समझौता पाकिस्तान के लिए भी सीधा संदेश है कि भारत और अमेरिका के सामरिक एवं रणनीतिक रिश्ते आज भी सहयोग की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। पाकिस्तान भले ही जितनी कोशिश कर ले, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भारत से प्रतिस्पर्धा करना उसके बूते से बाहर की बात है।
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