दिवाली नजदीक आने पर बाजार में रोशनी के सामान और पटाखों की बिक्री बढ़ जाती है। मगर पटाखे बनाने से लेकर बाजार में उन्हें पहुंचाने, रखरखाव और निगरानी तक के मामले में इस कदर लापरवाही बरती जाती है कि हर साल कई बड़े हादसे हो जाते हैं। पुरानी दिल्ली के नया बाजार इलाके में मंगलवार की सुबह पटाखों के चलते हुआ विस्फोट भी महज लापरवाही और नियम-कायदों को धता बताने का नतीजा है। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए। हैरानी की बात यह है कि भीड़-भाड़ वाले बाजार में जिस तरह पटाखों को प्लास्टिक के थैलों में एक मजदूर सिर पर ढोकर ले जा रहा था, उसके जोखिम का अंदाजा लगाना जरूरी नहीं समझा गया। खबरों के मुताबिक बोझ भारी होने के चलते उस मजदूर का संतुलन बिगड़ा, थैले जमीन पर गिरे और उनमें भयानक विस्फोट हो गया। अब पटाखों के कारोबारी को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश हो रही है।

सवाल है कि खुले बाजार में लोगों की मौजूदगी के बीच असुरक्षित तरीके से पटाखों की ढुलाई का काम प्रशासन की नाक के नीचे कैसे चल रहा था! क्या प्रशासन को इस बात का अंदाजा नहीं था कि दिवाली के आसपास वहां पटाखों के कारोबार में किस तरह का उफान आ सकता है और इस दौरान सावधानी बरतने के नियम-कायदों की अनदेखी हो सकती है? लापरवाही के चलते पटाखों में हुए विस्फोट से किसी की जान जाने की यह कोई अकेली घटना नहीं है। पिछले हफ्ते ही तमिलनाडु के शिवकाशी जिले में एक पटाखा गोदाम में आग लगने से नौ लोगों की झुलस कर मौत हो गई और तीन घायल हो गए। इसके अलावा, धार्मिक उत्सवों और समारोहों में भी आतिशबाजी के चलन ने ऐसे जोखिम को बढ़ाया है। इसी साल अप्रैल में केरल के कोल्लम जिले में पुत्तिंगल मंदिर के एक धार्मिक आयोजन के दौरान आतिशबाजी के चलते हुए भीषण हादसे में करीब सवा सौ लोगों की जान चली गई थी।

दरअसल, आतिशबाजी के लिए पटाखे बनाने के ज्यादातर कारखाने आमतौर पर नियम-कायदों को धता बता कर चलते हैं। उनमें काम करने वाले कारीगरों के पास न तो पटाखे तैयार करने के उचित प्रशिक्षण होते हैं, न वहां सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम किए जाते हैं। कम उम्र के बच्चों को भी इस काम में लगा दिया जाता है, जो नंगे हाथों से मिट्टी के ढांचों, रॉकेट ट्यूबों और कागज के खोल में बारूद भरते हैं। इस क्रम में मामूली असावधानी या ध्यान बंटने से कोई बड़ा धमाका और हादसा हो सकता है। यों भारत में विस्फोटकों के उत्पादन, भंडारण और बेचने के लिए सख्त नियम-कानून हैं। एक्सप्लोसिव रूल्स आॅफ 2008 के तहत पटाखों के रासायनिक संघटक, सुरक्षा मानक और रखरखाव के बारे में कठोर दिशा-निर्देश तय किए गए हैं। मगर शायद ही कहीं इन पर पूरी तरह अमल किया जाता है। इस मसले पर दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने पटाखों की तुलना आग्नेयास्त्रों से की थी। यह छिपी बात नहीं है कि पटाखों के इस्तेमाल पर कोई नियंत्रण न होने के कारण ये आसानी से उपलब्ध होते हैं। हादसे की स्थिति में इनका असर भी बम विस्फोट की किसी घटना की तरह ही होता है। अगर पटाखों के उत्पादन और रखरखाव से लेकर कारोबार तक पर उचित निगरानी की व्यवस्था हो तो शायद इतने जोखिम भरे हालात और बड़े हादसों से बचा जा सकता है।