जम्मू में वैष्णो देवी मार्ग पर भूस्खलन से हुआ हादसा दिल दहला देने वाली घटना है। माना जा रहा है कि मलबे में अभी भी कई लोग दबे हो सकते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह त्रासदी कितनी भयावह है। इस हादसे ने कई सवाल भी खड़े कर दिए हैं। मसलन, जब इस तरह की आपदा को लेकर पहले से चेतावनी जारी की गई थी तो श्रद्धालुओं को रोका क्यों नहीं गया? अगर अधिकारी समय रहते कदम उठाते, तो जानी नुकसान को टाला जा सकता था। यही नहीं, जम्मू-कश्मीर में भारी बारिश से बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए हैं।

कई आवासीय इलाके जलमग्न हैं, दूरसंचार सेवाएं ठप हैं और सड़कों के अवरुद्ध होने से लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। ऐसा लगता है कि शासन और प्रशासन ने पूर्व में आई प्राकृतिक आपदाओं से कोई सबक नहीं लिया है। इससे पहले हाल में किश्तवाड़ में बादल फटने से आई बाढ़ में कई लोगों की जान चली गई थी।

मौसम विभाग की चेतावनी के बावजूद वैष्णो देवी यात्रा क्यों नहीं रोकी गई? तीर्थयात्रियों की मौत पर उमर अब्दुल्ला का सवाल

हालांकि, प्रशासनिक स्तर पर कहा जा रहा है कि भूस्खलन की वजह बादल फटने का परिणाम था और भारी बारिश के मद्देनजर इस हादसे से पहले ही वैष्णो देवी मार्ग पर तीर्थयात्रा स्थगित कर दी गई थी। जबकि, मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अधिकारियों से पूछा है कि जब आपदा की पूर्व चेतावनी दी गई थी तो तीर्थ यात्रियों को मार्ग पर जाने से क्यों नहीं रोका गया। मगर, सवाल यह भी है कि अगर यात्रा रोक दी गई थी तो हादसे में इतने लोगों की जान कैसे चली गई?

इसमें दोराय नहीं कि भूस्खलन और बाढ़ की इस आपदा से उबरने में लोगों को काफी वक्त लगेगा, क्योंकि पुलों और सड़कों से लेकर इमारतों तथा सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को काफी क्षति पहुंची है। यह सवाल भी महत्त्वपूर्ण है कि अगर पहाड़ दरक रहे हैं, जमीन धंस रही है और नदियां उफन रही हैं, तो इसके मूल में क्या कारण हैं। इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि प्रकृति से हो खिलवाड़ को कैसे रोका जाए। पहाड़ी इलाकों में अवैज्ञानिक तरीके से निर्माण और खनन गतिविधियों पर अंकुश लगाना अब जरूरी हो गया है।