जम्मू-कश्मीर में इस बार जब लोकसभा चुनावों के दौरान मतदान में वहां के लोगों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था, तभी इस बात के संकेत मिल गए थे कि राज्य में राजनीति की तस्वीर तेजी से बदल रही है। अब विधानसभा चुनाव के पहले चरण में चौबीस सीटों के लिए हुए मतदान में बुधवार को जिस तरह वहां 61.13 फीसद वोटिंग का आंकड़ा आया, उससे साफ है कि जम्मू-कश्मीर के लोगों का भरोसा अब देश के लोकतंत्र में मजबूत हो रहा है और उसे ज्यादा ताकत देने के लिए वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उत्साह से हिस्सा ले रहे हैं।
यों राज्य में पिछले कुछ समय से लगातार आतंकवादी गतिविधियों के बीच जिस तरह की अप्रिय घटनाएं सामने आती रहीं, उससे इस बात की आशंका जरूर बनी हुई थी कि क्या इसका असर आम लोगों के चुनावों में हिस्सा लेने पर पड़ेगा और मतदान का फीसद कम रह सकता है! मगर इस डर को धता बताते हुए राज्य के लोगों ने अपना यह रुख स्पष्ट कर दिया कि वे अब वहां लोकतंत्र और राजनीतिक प्रक्रिया को मजबूत करने को लेकर गंभीर हैं।
आए दिन होने वाले आतंकी हमलों के जरिए आतंकवादी संगठन यह संदेश देने की कोशिश करते रहते हैं कि राज्य में अस्थिरता और हिंसा के बीच लोगों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रहना चाहिए। अतीत में इस तरह की कोशिशों को कुछ कामयाबी मिली भी जब चुनाव में कभी मतदान का फीसद बेहद कम रहा था। मगर मौजूदा समय में राज्य में लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से जो भी राजनीतिक प्रक्रिया चलाई जा रही है, उसमें वहां की जनता की सकारात्मक प्रतिक्रिया उम्मीद जगाती है।
अब भी कुछ हिस्सों में असंतोष का भाव
दरअसल, राज्य में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद यह आशंका जताई जा रही थी कि वहां की जनता का रुख चुनावों में मतदान के समय शायद सकारात्मक न रहे। सही है कि राज्य में अब भी आबादी के कुछ हिस्सों में इस मसले पर अलग-अलग विचार और असंतोष का भाव रहा है। बल्कि यह चुनावी मुद्दा भी बना और यह माना जा सकता है कि इस सवाल ने भी लोगों को चुनाव में हिस्सा लेने और अपनी राय जाहिर करने के लिए प्रेरक शक्ति का काम किया होगा।
यह बेवजह नहीं है कि न केवल मतदान केंद्रों पर लोग उम्मीद से ज्यादा संख्या में उमड़ कर आए, बल्कि शांतिपूर्ण तरीके से वोट डाला। एक समय था जब चुनाव की घोषणा के बाद आतंकवादी संगठनों की ओर से मतदान का बहिष्कार करने के लिए तरह-तरह की धमकियां दी जाती थीं। इस बार भी एक ओर राज्य में चुनाव आयोजित कराने की तैयारी चल रही थी और दूसरी ओर लगातार आतंकवादी संगठनों की ओर से कहीं सीमा पर घुसपैठ का प्रयास किया जा रहा था, कहीं लक्षित हमलों में हत्याएं की जा रही थीं, तो कभी सुरक्षा बलों के शिविरों पर हमले किए जा रहे थे।
ऐसा करके आम जनता के बीच आखिर क्या संदेश देने की कोशिश की गई? मगर इस तरह की आतंकी हिंसा का जवाब जम्मू-कश्मीर के लोगों ने शांतिपूर्ण और उत्साहजनक मतदान करके दिया। इस लिहाज से देखें तो पहले लोकसभा, और फिर अब विधानसभा चुनाव के लिए हुए मतदान में लंबी कतारें यह बताने के लिए काफी रहीं कि लोग अब वहां लंबे दौर के अशांत माहौल और आतंकवादी गतिविधियों से छुटकारा चाहते हैं और यह अंतिम तौर पर वहां लोकतंत्र की बहाली के जरिए ही संभव है। चुनाव में मतदान में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी वहां के लोगों के भीतर भारतीय लोकतंत्र में बढ़ते भरोसे का सूचक है।