उम्मीद की जा रही थी कि लोकसभा चुनावों के साथ ही जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा के लिए चुनाव कराए जाएंगे। मगर करीब डेढ़ महीने तक चलने वाली चुनाव प्रक्रिया के बीच जम्मू-कश्मीर के लिए गुंजाइश नहीं निकाली जा सकी। गौरतलब है कि लोकसभा के साथ ओड़िशा, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और आंध्र प्रदेश विधानसभाओं के लिए भी मतदान होंगे। यानी इन चार राज्यों में दो स्तर पर एक साथ चुनाव होंगे। हैरानी की बात है कि जम्मू-कश्मीर के हालात का हवाला देकर वहां फिलहाल विधानसभा के चुनाव न कराने की बात कही गई। जबकि राजनीतिक दलों ने निर्वाचन आयोग से लोकसभा के साथ विधानसभा के लिए भी मतदान कराने की मांग की थी।
मगर इस मसले पर चुनाव आयोग का साफ कहना था कि हमने राज्य की स्थिति को देखते हुए एक साथ चुनाव न कराने का फैसला किया। संभव है कि जम्मू-कश्मीर के हालात को लेकर चुनाव आयोग का अपना आकलन हो, मगर राज्य की पार्टियों ने जिस तरह इस पर सवाल उठाए हैं, वह भी गौरतलब है।
मसलन, नेशनल कांफ्रेंस ने कहा है कि अगर राज्य की सुरक्षा व्यवस्था को इसका कारण बताया जा रहा है तो ऐसा कैसे हो सकता है कि संसदीय चुनावों के लिए हालात सही हैं, मगर राज्य चुनावों की खातिर सुरक्षा व्यवस्था ठीक नहीं है। दूसरी ओर, सुरक्षा व्यवस्था के लिहाज से फिलहाल संवेदनशील हालात से गुजर रहे मणिपुर में भी चुनाव कराने की घोषणा हुई है। दूसरी ओर पिछले कुछ समय से छिटपुट घटनाओं के अलावा जम्मू-कश्मीर में आमतौर पर स्थिति में सुधार देखा गया है। इसके अलावा वहां परिसीमन से लेकर अन्य स्तर पर जो तकनीकी व्यवस्थाएं की जानी थीं, वे भी हो चुकी हैं।
ऐसे में अन्य चार राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव कराने की गुंजाइश निकाली जा सकती थी। जम्मू-कश्मीर देश का एक अहम हिस्सा है और उसे भी देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सक्रिय हिस्सा लेने का हक है। इसके मद्देनजर वहां संपूर्ण लोकतंत्र की बहाली के लिए जरूरी कदम उठाए जाने की जरूरत है, जिसमें राज्य की विधानसभा के लिए चुनाव प्राथमिक कसौटी है।