यह दिलचस्प ही कहा जाएगा कि किसी फैसले को लेकर वादी और प्रतिवादी दोनों खुश नजर आएं। पर संयुक्त राष्ट्र के मध्यस्थता न्यायाधिकरण को लेकर कुछ ऐसी ही प्रतिक्रिया दिखी है। हेग स्थित संयुक्त राष्ट्र के न्यायाधिकरण ने इतालवी मरीन के मामले में जो अंतरिम आदेश दिया है उसमें दोनों पक्ष अपनी जीत देख रहे हैं। यों पहली नजर में तो यह फैसला इटली के पक्ष में है, क्योंकि इससे भारत स्थित इतालवी दूतावास में नजरबंद इतालवी मरीन की रिहाई का रास्ता साफ हो सकता है। पर भारत ने भी इसमें फिलहाल अपने लिए तसल्ली ढूंढ़ने की कोशिश की है, इस बिना पर कि न्यायाधिकरण ने मामले को हमारे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक अधिकार क्षेत्र में माना है। गौरतलब है कि फरवरी 2012 में केरल से लगे समुद्री क्षेत्र में इतालवी जहाज एनरिक्सा लेक्सी पर सवार इतालवी मरीनों ने दो भारतीय मछुआरों को गोलियां चला कर मार दिया था। तब से यह मामला भारत और इटली के बीच खटास का विषय रहा है।
दो भारतीय मछुआरों के मारे जाने से स्वाभाविक ही भारत में काफी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। केरल में तो यह जनाक्रोश का एक खास मुद्दा रहा है। मध्यस्थता न्यायाधिकरण का अंतरिम आदेश ऐसे वक्त आया है जब केरल में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं और वहां हमेशा हाशिये पर रहती आई भारतीय जनता पार्टी इस बार खाता खुलने की उम्मीद पाले हुए है। इसलिए विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में काफी सावधानी बरती है। फैसले को अपने पक्ष में बताना भी एक तरह की सतर्कता ही है। हत्या के आरोप में जिन दो इतालवी मरीनों को पकड़ा गया था उनमें से एक को दिल का दौरा पड़ने के बाद इलाज की बिना पर इटली जाने की इजाजत दे दी गई। दूसरा मरीन नई दिल्ली स्थित इतालवी दूतावास में है।
इटली का कहना है कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण के अंतरिम आदेश के बाद मध्यस्थता की कार्यवाही लंबित रहने तक उसके स्वदेश लौटने का रास्ता साफ हो गया है। दूसरी ओर, भारत ने इस संभावना से इनकार तो नहीं किया है, पर कहा है कि फैसले से उसके इस दावे की पुष्टि हुई है कि यह मामला भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि इतालवी मरीन को जमानत दिलाने के लिए दोनों पक्ष भारत की सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाएं। इस निर्देश से साफ है कि मध्यस्थता न्यायाधिकरण का अंतरिम आदेश इटली की तरफ झुका हुआ है। न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की इस अदालत में इसका प्रावधान नहीं है।
भारत का शुरू से यह दावा रहा है कि फरवरी 2012 की घटना उसकी समुद्री सीमा में हुई थी, जबकि इटली के मुताबिक यह वाकया अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में हुआ था। यह विवाद फिर इस झगड़े में बदल गया कि भारत की अदालत को इस मामले में सुनवाई करने का अधिकार है या नहीं। न्यायिक क्षेत्र का विवाद आखिरकार पिछले साल जून में संयुक्त राष्ट्र के मध्यस्थता न्यायाधिकरण में पहुंच गया। इतालवी मरीन की जमानत के लिए न्यायाधिकरण ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में जाने का निर्देश जरूर दिया है, पर जहां तक मामले के न्यायिक अधिकार क्षेत्र को लेकर दोनों पक्षों के बीच चला आ रहा विवाद है, उस पर न्यायाधिकरण का अंतिम फैसला आना अभी बाकी है।