इस तरह अब रेपो दर साढ़े छह फीसद पर पहुंच गई है। इस बढ़ोतरी का अनुमान पहले से ही लगाया जा रहा था। पिछले दस महीनों में यह छठवीं बढ़ोतरी है। इस दौरान रेपो दर में ढाई सौ अंक की बढ़ोतरी की जा चुकी है।

हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अब रिजर्व बैंक बढ़ोतरी को लेकर अपने हाथ रोक लेगा। मगर रिजर्व बैंक के रुख से ऐसा नहीं लग रहा कि वह महंगाई को लेकर आश्वस्त है, इसलिए उसने इस पर कोई स्पष्ट टिप्पणी नहीं की है। रेपो दरों में बढ़ोतरी का मतलब होता है कि इस दर पर सारे बैंक भारतीय रिजर्व बैंक से कर्ज लेते और फिर उससे अपना कारोबार करते हैं।

जाहिर है, बैंक अपनी ब्याज दरें इससे कुछ ऊंची ही रखते हैं। इस तरह बैंकों से घर, वाहन, कारोबार आदि के लिए कर्ज लेने वालों पर ब्याज का बोझ बढ़ता है। मगर दूसरी तरफ उन लोगों को लाभ भी मिलता है, जिन्होंने अपने गाढ़े वक्त के लिए बैंकों में निवेश कर रखा या पैसे जमा कर रखे हैं।

रेपो दर में बढ़ोतरी का असर महंगाई पर पड़ता है। उसे रोकने में मदद मिलती है। पिछली बढ़ोतरियों का स्पष्ट प्रभाव भी नजर आ रहा है। फिर अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्याज दरों में बढ़ोतरी को देखते हुए भी भारतीय रिजर्व बैंक को अपनी दरों में बढ़ोतरी करना मजबूरी थी। अमेरिकी फेडरल ने महंगाई के मद्देनजर लगातार अपनी दरें ऊंची की हैं।

इसका नतीजा यह भी देखने को मिला कि बहुत सारे विदेशी निवेशकों ने भारत के बाजार से अपना पैसा निकाल कर वहां लगाना शुरू कर दिया। इसके चलते डालर के मुकाबले रुपए की कीमत गिरती गई। रिजर्व बैंक के रेपो दर में बढ़ोतरी से उन निवेशकों को रोकने में मदद मिलेगी। फिर ब्याज दरें ऊंची होने की वजह से बाजार में पूंजी का अनियंत्रित प्रवाह रुकता है।

मगर इससे महंगाई पर वास्तव में कितना असर पड़ेगा, दावा करना मुश्किल है। खुद रिजर्व बैंक ने माना है कि चालू वित्त वर्ष की चौथी तिमाही में महंगाई साढ़े पांच फीसद पर सिमट जाएगी, पर अगले वित्त वर्ष में फिर इसके बढ़ने की संभावना है। इसलिए एकमात्र रेपो दरों में बढ़ोतरी, महंगाई रोकने का कारगर उपाय साबित होगा, दावा नहीं किया जा सकता।

दरअसल, भारत में महंगाई बढ़ने की कई वजहें होती हैं। जिस साल मानसून अच्छा नहीं रहता या अनियंत्रित रहता है, उस साल कृषि उपज खराब होती है और खानेपीने की चीजों की कीमतें एकदम से बढ़ जाती हैं। फसलें अच्छी होती हैं, तो कीमतें नीचे आ जाती हैं। चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में महंगाई घटने के पीछे मुख्य वजह यही मानी गई। फिलहाल औद्योगिक क्षेत्र में अपेक्षित गति नहीं लौट पाई है। निर्यात का रुख नीचे की तरफ है।

कई देशों के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। रोजगार के नए अवसर पैदा नहीं हो पा रहे, जिसकी वजह से लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ पा रही। तेल की कीमतें अब भी काबू से बाहर हैं। ऐसे में महंगाई की दर अब लोगों की सहन क्षमता से अधिक है। फिर रेपो दरों में बढ़ोतरी का उपाय आजमाने से औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसका सीधा असर देश की विकास दर पर पड़ता है। यानी इस तरह संतुलन बिठाना मुश्किल रहेगा।