बड़े अस्पताल आमतौर पर उपचार के लिए सुरक्षित माने जाते हैं। मगर इनके सघन चिकित्सा कक्ष में अव्यवस्था की वजह से नवजात बच्चे चूहों के शिकार बनने लगें, तो यह घोर लापरवाही और संवेदनहीनता का ही सबूत है। यह दुखद ही है कि आए दिन सरकारी अस्पतालों में आज भी अराजकता दिखाई पड़ती रहती है और लापरवाही के कारण कई बार मरीजों की जान भी चली जाती है। मध्य प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में बच्चों के सघन चिकित्सा कक्ष में चूहों के कुतरने से दो नवजात शिशुओं की मौत ने सभी को झकझोर दिया है।
इंदौर के शासकीय महाराजा यशवंत राव चिकित्सालय में बच्चों की मौत के मामले में अस्पताल प्रशासन कठघरे में हैं, लेकिन इस घटना से जहां साफ-सफाई से लेकर कर्मियों की घोर लापरवाही उजागर हुई है, वहीं राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लग गया है। लोग अपने बच्चों को अस्पताल में लेकर इस उम्मीद से जाते हैं कि उनका ठीक से उपचार होगा।
जब सघन चिकित्सा कक्ष में उन्हें रखा जाता है, तो इस विश्वास के साथ अभिभावक इंतजार करते हैं कि बच्चा स्वस्थ होकर सुरक्षित बाहर आ आएगा। मगर उस कक्ष में भी चूहों के कुतरने से नवजात की मौत हो जाए, तो इसके लिए किसकी जिम्मेदारी तय की जाएगी? क्या यह समूचे अस्पताल प्रबंधन की नाकामी और लापरवाही का सबूत नहीं है?
राज्य के इस सबसे बड़े अस्पताल में चूहों की समस्या काफी समय से है। फिर भी इसकी अनदेखी की गई। समय-समय पर चूहों के सफाए के लिए अभियान भी चलाए गए, लेकिन समस्या अगर ज्यों की त्यों है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? अगर साफ-सफाई ठीक से की गई होती, प्रबंधन के स्तर पर हर वक्त चौकसी बरती गई होती, तो अस्पताल परिसर में चूहे नहीं पाए जाते।
इससे साबित होता है कि अस्पताल परिसर में चूहों के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या है। इस घटना की वजह से बस व्यवस्था की पोल-पट्टी खुली है। नवजात बच्चियों की मौत के मामले के तूल पकड़ने के बाद साफ-सफाई करने वाली एजंसी का ठेका जरूर खत्म कर दिया गया है, लेकिन पूछा जाना चाहिए कि हर वक्त चौकसी बरतने की जिम्मेदारी किसकी है?