पश्चिम एशिया के घटनाक्रम पर हमारे प्रधानमंत्री ने इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से बातचीत की। उन्होंने एक बार फिर दोहराया कि दुनिया में आतंकवाद का किसी भी रूप में समर्थन नहीं किया जा सकता, पर पश्चिम एशिया में शांति को लेकर भारत प्रतिबद्ध है। बंधकों की सुरक्षित रिहाई भी सुनिश्चित होनी चाहिए। भारत सदा से आतंकवाद के विरुद्ध रहा है। अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र पर आतंकी हमले के बाद जब दुनिया के अनेक देशों ने आतंकवाद के खिलाफ युद्ध छेड़ने की प्रतिबद्धता जाहिर की थी, तब भारत उनमें अगली कतार में शामिल था। मगर अभी तक दुनिया भर में चले अभियानों का इस दिशा में कोई उल्लेखनीय नतीजा नजर नहीं आया है। मगर भारत जहां भी मौका मिलता है, इस जरूरत को रेखांकित करता रहता है।

पाकिस्तान और चीन का नाम लिए बगैर प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय मंचों से कह चुके हैं कि कुछ देश अपनी विदेश नीति में आतंकवाद का समर्थन करते और कुछ देश आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई रोकने का परोक्ष प्रयास करते हैं। दरअसल, भारत खुद आतंकवाद से पार पाने की कोशिशों में जुटा हुआ है। इजराइल को उसके पड़ोसी फिलिस्तीन, लेबनान और यमन के आतंकी संगठनों से चुनौती मिलती रही है। इन दिनों वह उनसे आरपार की लड़ाई में जुटा हुआ है।

मगर जिस तरह इजराइल हमास, हिजबुल्लाह और हूती विद्रोहियों के खिलाफ हमले कर रहा है, उसमें बहुत सारे बेगुनाह लोग मारे गए हैं और मारे जा रहे हैं। उसमें अंतरराष्ट्रीय युद्ध नियमों की भी अनदेखी हो रही है। अस्पतालों, स्कूलों तक को निशाना बनाया जा रहा है। बहुत सारे रिहाइशी इलाके ध्वस्त किए जा चुके हैं। बीमार और लाचार लोगों तक जरूरी सुविधाएं भी नहीं पहुंच पा रहीं। हिजबुल्लाह के कमांड हसन नसरल्लाह को मार गिराने के बाद इजराइल ने अपना रुख यमन के हूती विद्रोहियों की तरफ केंद्रित कर दिया है।

मानवाधिकार हनन को लेकर दुनिया भर में चिंता

वहां भी वैसी ही तबाही की आशंका है, जैसी फिलिस्तीन के गाजा पट्टी और लेबनान के बेरूत में देखने को मिली है। इसमें सारी दुनिया की चिंता मानवाधिकारों के हनन को लेकर पैदा हो गई है। आतंकवादियों पर हमले से शायद ही किसी को एतराज हो, पर जिस तरह बेगुनाह लोग, स्त्रियां, बूढ़े और बच्चे मारे जा रहे हैं, फिलिस्तीन में बहुत सारे लोग बंधक बनाए गए हैं, वह स्वाभाविक ही परेशान करने वाली बात है। इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री ने नेतन्याहू से शांति की अपील की है।

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कुछ दिनों पहले अमेरिका और ब्रिटेन ने भी कोशिश की थी कि वे इजराइल को इक्कीस दिन के युद्ध विराम पर राजी कर लें, मगर नेतन्याहू ने उनके प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि जब तक वह आतंकी संगठनों का सफाया नहीं कर लेगा, तब तक उसका अभियान नहीं रुकेगा।

संयुक्त राष्ट्र के मंच से भी नेतन्याहू ने यह बात स्पष्ट कर दी थी। अब उन्होंने ईरान के लोगों को सीधे संबोधित करते हुए कहा कि ईरान का शाह आप लोगों के साथ गद्दारी कर रहा है, वह जो पैसा आतंकवाद को पोसने पर खर्च कर रहा है, अगर वह वहां शिक्षा, स्वास्थ्य और दूसरे विकास कार्यक्रमों पर खर्च हो, तो तरक्की के नए आयाम खुलेंगे। इस तरह इजराइल ने ईरान को भी पहले से चेतावनी दे रखी है। ऐसे में भारत के प्रयासों से कुछ उम्मीद बंधती है, मगर पश्चिम एशिया में शांति बहाली कब और किन स्थितियों में हो पाएगी, फिलहाल दावा करना कठिन है।